राम रमापति कर धनु लेहू। खैंचहु मिटै मोर संदेहू॥
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देखहिं रूप महा रनधीरा। मनहुँ बीर रसु धरें सरीरा॥
लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।
कलिजुग जोग न जग्य न ग्याना। एक अधार राम गुन गाना॥
भाव सहित खोजइ जो प्रानी। पाव भगति मनि सब सुख खानी॥
आगें राम अनुज पुनि पाछें। मुनि बर बेष बने अति काछें॥
राघवं रामचंद्रम च रावणारिं रमापतिम्।
जय राम रमारमनं समनं प्रनमामि निरंतर श्रीरमनं।
जो अपराधु भगत कर करई। राम रोष पावक सो जरई ॥
राम ब्रह्म परमारथ रूपा। अबिगत अलख अनादि अनूपा॥
सब साधनको एक फल जेहिं जान्यो सो जान।
भगत हेतु भगवान प्रभु राम धरेउ तनु भूप।
राम रूपु नख सिख सुभग बारहिं बार निहारि।