सत्यसंध प्रभु बधि करि एही। आनहु चर्म कहति बैदेही॥
Aranya Kand
निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।
सबसे ऊँची प्रेम सगाई।
भक्तौ सञ्जातमात्रायां मत्तत्त्वानुभवस्तदा।
जासु नाम सुमिरत एक बारा। उतरहिं नर भवसिंधु अपारा॥
दंडक बन प्रभु कीन्ह सुहावन जन मन अमित नाम किए पावन॥
दुरबासा मोहि दीन्ही सापा। प्रभु पद पेखि मिटा सो पापा॥
भगति कि साधन कहउँ बखानी। सुगम पंथ मोहि पावहिं प्रानी॥
पुलकित गात अत्रि उठि धाए। देखि रामु आतुर चलि आए॥
प्रभु पहिचानि परेउ गहि चरना। सो सुख उमा जाइ नहिं बरना॥
दुष्ट विबुधारी-संघात, अपहरण महि-भार, अवतार कारण अनूपं।
तव दासस्य दासानां शतसङ्ख्योत्तरस्य वा। दासीत्वे नाधिकारोऽस्ति कुतः साक्षात्तवैव हि॥
राम लखन मुनि गन मिलन मंजुल मंगल मूल।
आगें राम अनुज पुनि पाछें। मुनि बर बेष बने अति काछें॥