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हजार अश्वमेधयज्ञ और लाख बार पृथ्वी की प्रदक्षिणा करने से जो फल मिलता है, वही फल कुम्भ स्नान से प्राप्त हो जाता है-
हजार अश्वमेधयज्ञ और लाख बार पृथ्वी की प्रदक्षिणा करने से जो फल मिलता है, वही फल कुम्भ स्नान से प्राप्त हो जाता है-
मोहिनी रूप, कुम्भ स्नान महापर्व
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हजार अश्वमेधयज्ञ और लाख बार पृथ्वी की प्रदक्षिणा करने से जो फल मिलता है, वही फल कुम्भ स्नान से प्राप्त हो जाता है-
महामुनि गाधि, कौशिक तथा महर्षि पिप्पलाद का नाम स्मरण करने से 'शनिग्रह कृत पीडा' नष्ट हो जाती है।
महामुनि गाधि, कौशिक तथा महर्षि पिप्पलाद का नाम स्मरण करने से 'शनिग्रह कृत पीडा' नष्ट हो जाती है।
महर्षि दधीचि पुत्र रुद्रावतार महर्षि पिप्पलाद की कथा
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महामुनि गाधि, कौशिक तथा महर्षि पिप्पलाद का नाम स्मरण करने से 'शनिग्रह कृत पीडा' नष्ट हो जाती है।
प्रभु ने अच्छा किया जो मुझे शिक्षा (दंड) दी, किंतु मर्यादा (जीवों का स्वभाव) भी आपकी ही बनाई हुई है। ढोल, गँवार, शूद्र, पशु और स्त्री- ये सब शिक्षा के अधिकारी हैं॥ प्रभु के प्रताप से मैं सूख जाऊँगा और सेना पार उतर जाएगी, इसमें मेरी बड़ाई नहीं है (मेरी मर्यादा नहीं रहेगी)।
प्रभु ने अच्छा किया जो मुझे शिक्षा (दंड) दी, किंतु मर्यादा (जीवों का स्वभाव) भी आपकी ही बनाई हुई है। ढोल, गँवार, शूद्र, पशु और स्त्री- ये सब शिक्षा के अधिकारी हैं॥ प्रभु के प्रताप से मैं सूख जाऊँगा और सेना पार उतर जाएगी, इसमें मेरी बड़ाई नहीं है (मेरी मर्यादा नहीं रहेगी)।
ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी,चौपाई का अर्थ
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प्रभु ने अच्छा किया जो मुझे शिक्षा (दंड) दी, किंतु मर्यादा (जीवों का स्वभाव) भी आपकी ही बनाई हुई है। ढोल, गँवार, शूद्र, पशु और स्त्री- ये सब शिक्षा के अधिकारी हैं॥ प्रभु के प्रताप से मैं सूख जाऊँगा और सेना पार उतर जाएगी, इसमें मेरी बड़ाई नहीं है (मेरी मर्यादा नहीं रहेगी)।
वह ब्रह्मभूत-अवस्थाको प्राप्त प्रसन्न मनवाला साधक न तो किसीके लिये शोक करता है और न किसीकी इच्छा करता है। ऐसा सम्पूर्ण प्राणियोंमें समभाववाला साधक मेरी पराभक्तिको प्राप्त हो जाता है।
वह ब्रह्मभूत-अवस्थाको प्राप्त प्रसन्न मनवाला साधक न तो किसीके लिये शोक करता है और न किसीकी इच्छा करता है। ऐसा सम्पूर्ण प्राणियोंमें समभाववाला साधक मेरी पराभक्तिको प्राप्त हो जाता है।
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वह ब्रह्मभूत-अवस्थाको प्राप्त प्रसन्न मनवाला साधक न तो किसीके लिये शोक करता है और न किसीकी इच्छा करता है। ऐसा सम्पूर्ण प्राणियोंमें समभाववाला साधक मेरी पराभक्तिको प्राप्त हो जाता है।