देवर्षि नारद एवं रत्नाकर डाकू (वाल्मीकि जी) का संवाद-
Valmiki ji
यह धरती का प्रथम छंदबद्ध काव्य जिसे "आदि श्लोक" कहते है, जिसके कारण वाल्मीकि जी को रामायण रचने की प्रेरणा हुई, जब उन्होंने एक वधिक को प्रेम-मग्न क्रोंच पक्षी की हत्या करते देखा और फिर मादा पक्षी की रोने की आवाज़ सुनी तो उनका हृदय अत्यंत द्रवित हुआ व उनके मुख से स्वतः निकल पड़ा1/4
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्।
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्।
करमनास जलु सुरसरि परई। तेहि को कहहु सीस नहिं धरेई॥
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्।