अक्षय तृतीया (त्रेतायुग की उदयतिथि) का आध्यात्मिक एवं पौराणिक महत्व-
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भाद्रपद शुक्ल पंचमी (ऋषिपंचमी व्रत) का महात्म्य (कुतिया और बैल की कथा)-
माँ गंगा के अवतरण (गंगा दशहरा) एवं विष्णुपदी नाम पड़ने की कथा (२/२)
गंगा दशहरा
माँ गंगा के अवतरण (गंगा दशहरा) एवं विष्णुपदी नाम पड़ने की कथा (२/२)
कन्यादान का महत्व
दानवीर महाराज बलि का पूर्वजन्म
प्रह्लाद जी का पावन पुण्य चरित्र (2/3)
कागभुशुण्डि जी कहते है, हे नाथ! मैंने अपनी बुद्धि के अनुसार कहा, कुछ भी छिपा नहीं रखा। (फिर भी) श्री रघुवीर के चरित्र समुद्र के समान हैं, क्या उनकी कोई थाह पा सकता है?
चिरंजीवी काग श्री कागभुसुंडि जी की सम्पूर्ण कथा
गरुड़ जी बोले, संत और असंत का मर्म (भेद) आप जानते हैं, उनके सहज स्वभाव का वर्णन कीजिए। फिर कहिए कि श्रुतियों में प्रसिद्ध सबसे महान् पुण्य कौन सा है और सबसे महान् भयंकर पाप कौन है॥
गरुड़जी और कागभुशुण्डिजी संवाद
सूरदासजी की जीवनी (अष्टछाप के ८ संत) २/३
भगवान के दिव्य आयुध धारण करने का रहस्य तथा उनका प्रिय पात्र बनना-
सिंहः प्रसेनमवधीत्सिंहो जाम्बवता हतः।
भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी
वेदों में श्री गणेश/ विघ्नहर्ता श्रीगणेश (३/३)
गणेश चतुर्थी का पूजा विधान (२/३)
शिव पुराण में गणेश चतुर्थी का रहस्य, माहात्म्य एवं वर्षभर की चतुर्थीयों की संक्षिप्त कथाऐं एवं व्रत विधि (२/३)
यद्यपि श्री रघुवीर समस्त लोकों के स्वामी हैं, पर उनका स्वभाव अत्यंत ही कोमल है। मिलते ही प्रभु आप पर कृपा करेंगे और आपका एक भी अपराध वे हृदय में नहीं रखेंगे॥
श्री रघुनाथ जी का सहज स्वभाव-
सनकादि मुनियों को आते देखकर श्री रामचंद्र जी ने हर्षित होकर दंडवत किया और स्वागत (कुशल) पूछकर प्रभु ने (उनके) बैठने के लिए अपना पीताम्बर बिछा दिया फिर हनुमान जी सहित तीनो भाइयो ने दंडवत की। मुनि श्री रघुनाथ जी की अतुलनीय छबि देखकर उसी में मग्न हो गए। वे मन को रोक न सके॥
रामचरितमानस में प्रेमतत्व
विभिन्न सम्प्रदायों के तिलक व तिलकधारण की महिमा- (1/2)
बुद्धि विवेक विज्ञान निधाना
भगवान् श्रीराम द्वारा श्रीहनुमानजी का गर्व भंग
जब भगवान ने अपनी माया को हटा लिया, तब वहाँ न लक्ष्मी ही रह गईं, न राजकुमारी ही। तब मुनि ने अत्यंत भयभीत होकर हरि के चरण पकड़ लिए और कहा, हे शरणागत के दुःखों को हरनेवाले! मेरी रक्षा कीजिए।
नारदजी को स्त्री रूप प्राप्ति
हे हरि, अबकी तुमने अच्छे घर बैर लिया (मुझसे छेड़खानी की है),अतः अपने किए का फल अवश्य पाओगे। जिस शरीर (मनुष्य) को धरकर तुमने मुझे ठगा है, तुम भी वही शरीर धारण करो, यह मेरा शाप है। तुमने हमे बंदर का रूप दिया,इससे बंदर ही तुम्हारी सहायता करेंगे। जिस स्त्री को मै चाहता था, तुमने उससे
श्रीनारद मोह की कथा
जगत में कौन सा ऐसा कठिन काम है जो हे तात! तुमसे न हो सके। श्री राम जी के कार्य के लिए ही तो तुम्हारा अवतार हुआ है। यह सुनते ही हनुमान जी पर्वत के आकार के (अत्यंत विशालकाय) हो गए॥
संकटमित्र हनुमानजी
माता द्रौपदी का सम्पूर्ण चरित्र।
कुमारी चापि पाञ्चाली वेदीमध्यात् समुत्थिता।
दुर्गा सप्तशती में "नमस्तस्यै" शब्द की पुनरावृत्ति का रहस्य (2/2)
आप समरूप, ब्रह्म, अविनाशी, नित्य, एकरस, स्वभाव से ही उदासीन (शत्रु-मित्र-भावरहित), अखंड, निर्गुण (मायिक गुणों से रहित), अजन्मे, निष्पाप, निर्विकार, अजेय, अमोघशक्ति (जिनकी शक्ति कभी व्यर्थ नहीं जाती) और दयामय हैं॥
भगवान् श्रीराम का वास्तविक स्वरूप एवं भक्ति
श्री रामचरितमानस में शक्ति तत्व निरूपण। (२/२)
महामृत्युंजय मंत्र जप का विधान-
यह जानकर राधाजी व्याकुल हो गई तब भगवान कृष्ण ने उनको माँ काली बनकर दर्शन दिए थे और दुख दूर किया था।
कृष्णकाली लेख
मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान।
तुम्हरो मंत्र विभीषण माना का अर्थ