Articles

163 bookmarks
Newest
कागभुशुण्डि जी कहते है, हे नाथ! मैंने अपनी बुद्धि के अनुसार कहा, कुछ भी छिपा नहीं रखा। (फिर भी) श्री रघुवीर के चरित्र समुद्र के समान हैं, क्या उनकी कोई थाह पा सकता है?
कागभुशुण्डि जी कहते है, हे नाथ! मैंने अपनी बुद्धि के अनुसार कहा, कुछ भी छिपा नहीं रखा। (फिर भी) श्री रघुवीर के चरित्र समुद्र के समान हैं, क्या उनकी कोई थाह पा सकता है?
चिरंजीवी काग श्री कागभुसुंडि जी की सम्पूर्ण कथा
·x.com·
कागभुशुण्डि जी कहते है, हे नाथ! मैंने अपनी बुद्धि के अनुसार कहा, कुछ भी छिपा नहीं रखा। (फिर भी) श्री रघुवीर के चरित्र समुद्र के समान हैं, क्या उनकी कोई थाह पा सकता है?
गरुड़ जी बोले, संत और असंत का मर्म (भेद) आप जानते हैं, उनके सहज स्वभाव का वर्णन कीजिए। फिर कहिए कि श्रुतियों में प्रसिद्ध सबसे महान् पुण्य कौन सा है और सबसे महान् भयंकर पाप कौन है॥
गरुड़ जी बोले, संत और असंत का मर्म (भेद) आप जानते हैं, उनके सहज स्वभाव का वर्णन कीजिए। फिर कहिए कि श्रुतियों में प्रसिद्ध सबसे महान् पुण्य कौन सा है और सबसे महान् भयंकर पाप कौन है॥
गरुड़जी और कागभुशुण्डिजी संवाद
·x.com·
गरुड़ जी बोले, संत और असंत का मर्म (भेद) आप जानते हैं, उनके सहज स्वभाव का वर्णन कीजिए। फिर कहिए कि श्रुतियों में प्रसिद्ध सबसे महान् पुण्य कौन सा है और सबसे महान् भयंकर पाप कौन है॥
शिव पुराण में गणेश चतुर्थी का रहस्य, माहात्म्य एवं वर्षभर की चतुर्थीयों की संक्षिप्त कथाऐं एवं व्रत विधि (२/३)
शिव पुराण में गणेश चतुर्थी का रहस्य, माहात्म्य एवं वर्षभर की चतुर्थीयों की संक्षिप्त कथाऐं एवं व्रत विधि (२/३)
·x.com·
शिव पुराण में गणेश चतुर्थी का रहस्य, माहात्म्य एवं वर्षभर की चतुर्थीयों की संक्षिप्त कथाऐं एवं व्रत विधि (२/३)
यद्यपि श्री रघुवीर समस्त लोकों के स्वामी हैं, पर उनका स्वभाव अत्यंत ही कोमल है। मिलते ही प्रभु आप पर कृपा करेंगे और आपका एक भी अपराध वे हृदय में नहीं रखेंगे॥
यद्यपि श्री रघुवीर समस्त लोकों के स्वामी हैं, पर उनका स्वभाव अत्यंत ही कोमल है। मिलते ही प्रभु आप पर कृपा करेंगे और आपका एक भी अपराध वे हृदय में नहीं रखेंगे॥
श्री रघुनाथ जी का सहज स्वभाव-
·x.com·
यद्यपि श्री रघुवीर समस्त लोकों के स्वामी हैं, पर उनका स्वभाव अत्यंत ही कोमल है। मिलते ही प्रभु आप पर कृपा करेंगे और आपका एक भी अपराध वे हृदय में नहीं रखेंगे॥
सनकादि मुनियों को आते देखकर श्री रामचंद्र जी ने हर्षित होकर दंडवत किया और स्वागत (कुशल) पूछकर प्रभु ने (उनके) बैठने के लिए अपना पीताम्बर बिछा दिया फिर हनुमान जी सहित तीनो भाइयो ने दंडवत की। मुनि श्री रघुनाथ जी की अतुलनीय छबि देखकर उसी में मग्न हो गए। वे मन को रोक न सके॥
सनकादि मुनियों को आते देखकर श्री रामचंद्र जी ने हर्षित होकर दंडवत किया और स्वागत (कुशल) पूछकर प्रभु ने (उनके) बैठने के लिए अपना पीताम्बर बिछा दिया फिर हनुमान जी सहित तीनो भाइयो ने दंडवत की। मुनि श्री रघुनाथ जी की अतुलनीय छबि देखकर उसी में मग्न हो गए। वे मन को रोक न सके॥
रामचरितमानस में प्रेमतत्व
·x.com·
सनकादि मुनियों को आते देखकर श्री रामचंद्र जी ने हर्षित होकर दंडवत किया और स्वागत (कुशल) पूछकर प्रभु ने (उनके) बैठने के लिए अपना पीताम्बर बिछा दिया फिर हनुमान जी सहित तीनो भाइयो ने दंडवत की। मुनि श्री रघुनाथ जी की अतुलनीय छबि देखकर उसी में मग्न हो गए। वे मन को रोक न सके॥
जब भगवान ने अपनी माया को हटा लिया, तब वहाँ न लक्ष्मी ही रह गईं, न राजकुमारी ही। तब मुनि ने अत्यंत भयभीत होकर हरि के चरण पकड़ लिए और कहा, हे शरणागत के दुःखों को हरनेवाले! मेरी रक्षा कीजिए।
जब भगवान ने अपनी माया को हटा लिया, तब वहाँ न लक्ष्मी ही रह गईं, न राजकुमारी ही। तब मुनि ने अत्यंत भयभीत होकर हरि के चरण पकड़ लिए और कहा, हे शरणागत के दुःखों को हरनेवाले! मेरी रक्षा कीजिए।
नारदजी को स्त्री रूप प्राप्ति
·x.com·
जब भगवान ने अपनी माया को हटा लिया, तब वहाँ न लक्ष्मी ही रह गईं, न राजकुमारी ही। तब मुनि ने अत्यंत भयभीत होकर हरि के चरण पकड़ लिए और कहा, हे शरणागत के दुःखों को हरनेवाले! मेरी रक्षा कीजिए।
हे हरि, अबकी तुमने अच्छे घर बैर लिया (मुझसे छेड़खानी की है),अतः अपने किए का फल अवश्य पाओगे। जिस शरीर (मनुष्य) को धरकर तुमने मुझे ठगा है, तुम भी वही शरीर धारण करो, यह मेरा शाप है। तुमने हमे बंदर का रूप दिया,इससे बंदर ही तुम्हारी सहायता करेंगे। जिस स्त्री को मै चाहता था, तुमने उससे
हे हरि, अबकी तुमने अच्छे घर बैर लिया (मुझसे छेड़खानी की है),अतः अपने किए का फल अवश्य पाओगे। जिस शरीर (मनुष्य) को धरकर तुमने मुझे ठगा है, तुम भी वही शरीर धारण करो, यह मेरा शाप है। तुमने हमे बंदर का रूप दिया,इससे बंदर ही तुम्हारी सहायता करेंगे। जिस स्त्री को मै चाहता था, तुमने उससे
श्रीनारद मोह की कथा
·x.com·
हे हरि, अबकी तुमने अच्छे घर बैर लिया (मुझसे छेड़खानी की है),अतः अपने किए का फल अवश्य पाओगे। जिस शरीर (मनुष्य) को धरकर तुमने मुझे ठगा है, तुम भी वही शरीर धारण करो, यह मेरा शाप है। तुमने हमे बंदर का रूप दिया,इससे बंदर ही तुम्हारी सहायता करेंगे। जिस स्त्री को मै चाहता था, तुमने उससे
जगत में कौन सा ऐसा कठिन काम है जो हे तात! तुमसे न हो सके। श्री राम जी के कार्य के लिए ही तो तुम्हारा अवतार हुआ है। यह सुनते ही हनुमान जी पर्वत के आकार के (अत्यंत विशालकाय) हो गए॥
जगत में कौन सा ऐसा कठिन काम है जो हे तात! तुमसे न हो सके। श्री राम जी के कार्य के लिए ही तो तुम्हारा अवतार हुआ है। यह सुनते ही हनुमान जी पर्वत के आकार के (अत्यंत विशालकाय) हो गए॥
संकटमित्र हनुमानजी
·x.com·
जगत में कौन सा ऐसा कठिन काम है जो हे तात! तुमसे न हो सके। श्री राम जी के कार्य के लिए ही तो तुम्हारा अवतार हुआ है। यह सुनते ही हनुमान जी पर्वत के आकार के (अत्यंत विशालकाय) हो गए॥
आप समरूप, ब्रह्म, अविनाशी, नित्य, एकरस, स्वभाव से ही उदासीन (शत्रु-मित्र-भावरहित), अखंड, निर्गुण (मायिक गुणों से रहित), अजन्मे, निष्पाप, निर्विकार, अजेय, अमोघशक्ति (जिनकी शक्ति कभी व्यर्थ नहीं जाती) और दयामय हैं॥
आप समरूप, ब्रह्म, अविनाशी, नित्य, एकरस, स्वभाव से ही उदासीन (शत्रु-मित्र-भावरहित), अखंड, निर्गुण (मायिक गुणों से रहित), अजन्मे, निष्पाप, निर्विकार, अजेय, अमोघशक्ति (जिनकी शक्ति कभी व्यर्थ नहीं जाती) और दयामय हैं॥
भगवान् श्रीराम का वास्तविक स्वरूप एवं भक्ति
·x.com·
आप समरूप, ब्रह्म, अविनाशी, नित्य, एकरस, स्वभाव से ही उदासीन (शत्रु-मित्र-भावरहित), अखंड, निर्गुण (मायिक गुणों से रहित), अजन्मे, निष्पाप, निर्विकार, अजेय, अमोघशक्ति (जिनकी शक्ति कभी व्यर्थ नहीं जाती) और दयामय हैं॥
यह जानकर राधाजी व्याकुल हो गई तब भगवान कृष्ण ने उनको माँ काली बनकर दर्शन दिए थे और दुख दूर किया था।
यह जानकर राधाजी व्याकुल हो गई तब भगवान कृष्ण ने उनको माँ काली बनकर दर्शन दिए थे और दुख दूर किया था।
कृष्णकाली लेख
·x.com·
यह जानकर राधाजी व्याकुल हो गई तब भगवान कृष्ण ने उनको माँ काली बनकर दर्शन दिए थे और दुख दूर किया था।
पूर्णकाम, आनंद की राशि, अजन्मा और अविनाशी श्री रामजी मनुष्यों के चरित्र कर रहे हैं। आगे (जाने पर) उन्होंने गृध्रपति जटायु को पड़ा देखा। वह श्री रामचंद्रजी के चरणों का स्मरण कर रहा था, जिनमें (ध्वजा, कुलिश आदि की) रेखाएँ (चिह्न) हैं॥
पूर्णकाम, आनंद की राशि, अजन्मा और अविनाशी श्री रामजी मनुष्यों के चरित्र कर रहे हैं। आगे (जाने पर) उन्होंने गृध्रपति जटायु को पड़ा देखा। वह श्री रामचंद्रजी के चरणों का स्मरण कर रहा था, जिनमें (ध्वजा, कुलिश आदि की) रेखाएँ (चिह्न) हैं॥
भगवान श्रीराम के ४८ चरण चिन्ह-
·x.com·
पूर्णकाम, आनंद की राशि, अजन्मा और अविनाशी श्री रामजी मनुष्यों के चरित्र कर रहे हैं। आगे (जाने पर) उन्होंने गृध्रपति जटायु को पड़ा देखा। वह श्री रामचंद्रजी के चरणों का स्मरण कर रहा था, जिनमें (ध्वजा, कुलिश आदि की) रेखाएँ (चिह्न) हैं॥
भगवान् विष्णु के अत्यंत प्रेम-लपेटे अटपटे वचन सुनकर शंकरजी मन-ही-मन मुसकराने लगे और बोले, हे नारायण ! यह आप क्या कह रहे हैं? आपसे बढ़कर मुझे और कोई प्रिय हो सकता है? औरोंकी तो बात ही क्या, पार्वती भी मुझे आपके समान प्रिय नहीं है।
भगवान् विष्णु के अत्यंत प्रेम-लपेटे अटपटे वचन सुनकर शंकरजी मन-ही-मन मुसकराने लगे और बोले, हे नारायण ! यह आप क्या कह रहे हैं? आपसे बढ़कर मुझे और कोई प्रिय हो सकता है? औरोंकी तो बात ही क्या, पार्वती भी मुझे आपके समान प्रिय नहीं है।
·x.com·
भगवान् विष्णु के अत्यंत प्रेम-लपेटे अटपटे वचन सुनकर शंकरजी मन-ही-मन मुसकराने लगे और बोले, हे नारायण ! यह आप क्या कह रहे हैं? आपसे बढ़कर मुझे और कोई प्रिय हो सकता है? औरोंकी तो बात ही क्या, पार्वती भी मुझे आपके समान प्रिय नहीं है।