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सनकादि मुनियों को आते देखकर श्री रामचंद्र जी ने हर्षित होकर दंडवत किया और स्वागत (कुशल) पूछकर प्रभु ने (उनके) बैठने के लिए अपना पीताम्बर बिछा दिया फिर हनुमान जी सहित तीनो भाइयो ने दंडवत की। मुनि श्री रघुनाथ जी की अतुलनीय छबि देखकर उसी में मग्न हो गए। वे मन को रोक न सके॥
रामचरितमानस में प्रेमतत्व
हे हरि, अबकी तुमने अच्छे घर बैर लिया (मुझसे छेड़खानी की है),अतः अपने किए का फल अवश्य पाओगे। जिस शरीर (मनुष्य) को धरकर तुमने मुझे ठगा है, तुम भी वही शरीर धारण करो, यह मेरा शाप है। तुमने हमे बंदर का रूप दिया,इससे बंदर ही तुम्हारी सहायता करेंगे। जिस स्त्री को मै चाहता था, तुमने उससे
श्रीनारद मोह की कथा