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तब छह मुख वाले पुत्र (स्वामिकार्तिक) का जन्म हुआ, जिन्होंने युद्ध में तारकासुर को मारा। वेद, शास्त्र और पुराणों में स्वामिकार्तिक के जन्म की कथा प्रसिद्ध है और सारा जगत् उसे जानता है।
तब छह मुख वाले पुत्र (स्वामिकार्तिक) का जन्म हुआ, जिन्होंने युद्ध में तारकासुर को मारा। वेद, शास्त्र और पुराणों में स्वामिकार्तिक के जन्म की कथा प्रसिद्ध है और सारा जगत् उसे जानता है।
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तब छह मुख वाले पुत्र (स्वामिकार्तिक) का जन्म हुआ, जिन्होंने युद्ध में तारकासुर को मारा। वेद, शास्त्र और पुराणों में स्वामिकार्तिक के जन्म की कथा प्रसिद्ध है और सारा जगत् उसे जानता है।
सत्ययुग, त्रेता और द्वापर में जो गति पूजा, यज्ञ और योग से प्राप्त होती है, वही गति कलियुग में लोग वही गति केवल भगवान के नाम से पा जाते हैं॥ (२/३)
सत्ययुग, त्रेता और द्वापर में जो गति पूजा, यज्ञ और योग से प्राप्त होती है, वही गति कलियुग में लोग वही गति केवल भगवान के नाम से पा जाते हैं॥ (२/३)
कलयुग का महान साधन नामजप
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सत्ययुग, त्रेता और द्वापर में जो गति पूजा, यज्ञ और योग से प्राप्त होती है, वही गति कलियुग में लोग वही गति केवल भगवान के नाम से पा जाते हैं॥ (२/३)
षष्ठांशा प्रकृतेर्या च सा च षष्ठी प्रकीर्तिता। बालकाधिष्ठातृदेवी विष्णुमाया च बालदा॥
षष्ठांशा प्रकृतेर्या च सा च षष्ठी प्रकीर्तिता। बालकाधिष्ठातृदेवी विष्णुमाया च बालदा॥
Chath pooja
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षष्ठांशा प्रकृतेर्या च सा च षष्ठी प्रकीर्तिता। बालकाधिष्ठातृदेवी विष्णुमाया च बालदा॥
हनुमानजी ने घोषणा की, मै अनायास ही महान् पराक्रम करने वाले कोसलनरेश श्रीरामचन्द्रजी का दास हूँ। मेरा नाम हनुमान् है। मैं वायु का पुत्र तथा शत्रुसेना का संहार करने वाला हूँ।
हनुमानजी ने घोषणा की, मै अनायास ही महान् पराक्रम करने वाले कोसलनरेश श्रीरामचन्द्रजी का दास हूँ। मेरा नाम हनुमान् है। मैं वायु का पुत्र तथा शत्रुसेना का संहार करने वाला हूँ।
आचार्य हनुमानजी
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हनुमानजी ने घोषणा की, मै अनायास ही महान् पराक्रम करने वाले कोसलनरेश श्रीरामचन्द्रजी का दास हूँ। मेरा नाम हनुमान् है। मैं वायु का पुत्र तथा शत्रुसेना का संहार करने वाला हूँ।
कार्तिक मास का रहस्य (कथा), माता सत्यभामा का पूर्वजन्म, कार्तिक माहात्म्य एवं कार्तिक माह के पर्वों का संक्षिप्त विवरण (२/३)
कार्तिक मास का रहस्य (कथा), माता सत्यभामा का पूर्वजन्म, कार्तिक माहात्म्य एवं कार्तिक माह के पर्वों का संक्षिप्त विवरण (२/३)
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कार्तिक मास का रहस्य (कथा), माता सत्यभामा का पूर्वजन्म, कार्तिक माहात्म्य एवं कार्तिक माह के पर्वों का संक्षिप्त विवरण (२/३)
महाराजा जनक की पुत्री, जगत् की माता और करुणा निधान श्री रामचन्द्रजी की प्रियतमा श्री जानकीजी के दोनों चरण कमलों को मैं मनाता हूँ, जिनकी कृपा से मैं निर्मल बुद्धि पाता हूँ॥
महाराजा जनक की पुत्री, जगत् की माता और करुणा निधान श्री रामचन्द्रजी की प्रियतमा श्री जानकीजी के दोनों चरण कमलों को मैं मनाता हूँ, जिनकी कृपा से मैं निर्मल बुद्धि पाता हूँ॥
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महाराजा जनक की पुत्री, जगत् की माता और करुणा निधान श्री रामचन्द्रजी की प्रियतमा श्री जानकीजी के दोनों चरण कमलों को मैं मनाता हूँ, जिनकी कृपा से मैं निर्मल बुद्धि पाता हूँ॥
तब उन्होंने राम-नाम से अंकित अत्यंत सुंदर एवं मनोहर अँगूठी देखी। अँगूठी को पहचानकर माता सीताजी आश्चर्यचकित होकर उसे देखने लगीं और हर्ष तथा विषाद से हृदय में अकुला उठीं॥
तब उन्होंने राम-नाम से अंकित अत्यंत सुंदर एवं मनोहर अँगूठी देखी। अँगूठी को पहचानकर माता सीताजी आश्चर्यचकित होकर उसे देखने लगीं और हर्ष तथा विषाद से हृदय में अकुला उठीं॥
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तब उन्होंने राम-नाम से अंकित अत्यंत सुंदर एवं मनोहर अँगूठी देखी। अँगूठी को पहचानकर माता सीताजी आश्चर्यचकित होकर उसे देखने लगीं और हर्ष तथा विषाद से हृदय में अकुला उठीं॥
आप समरूप, ब्रह्म, अविनाशी, नित्य, एकरस, स्वभाव से ही उदासीन (शत्रु-मित्र-भावरहित), अखंड, निर्गुण (मायिक गुणों से रहित), अजन्मे, निष्पाप, निर्विकार, अजेय, अमोघशक्ति (जिनकी शक्ति कभी व्यर्थ नहीं जाती) और दयामय हैं॥
आप समरूप, ब्रह्म, अविनाशी, नित्य, एकरस, स्वभाव से ही उदासीन (शत्रु-मित्र-भावरहित), अखंड, निर्गुण (मायिक गुणों से रहित), अजन्मे, निष्पाप, निर्विकार, अजेय, अमोघशक्ति (जिनकी शक्ति कभी व्यर्थ नहीं जाती) और दयामय हैं॥
भगवान् श्री राम का वास्तविक स्वरूप और उनकी भक्ति
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आप समरूप, ब्रह्म, अविनाशी, नित्य, एकरस, स्वभाव से ही उदासीन (शत्रु-मित्र-भावरहित), अखंड, निर्गुण (मायिक गुणों से रहित), अजन्मे, निष्पाप, निर्विकार, अजेय, अमोघशक्ति (जिनकी शक्ति कभी व्यर्थ नहीं जाती) और दयामय हैं॥
हे नाथ! हे नरवरोत्तम! हे दयालु सीतापते!आप कहाँ है,मेरी दशापर दृष्टिपात करे,प्रभो! आपका मुख स्वभावसे ही शोभासम्पन्न है उसपर भी सुन्दर कुण्डलो के कारणतो उसकी सुषमा औरभी बढ़ गयीहै।आप भक्तों की पीडाका नाश करनेवालेहै।हे मनोहर रूप धारण करनेवाले दयामय!मुझे इस बन्धनसे शीघ्र मुक्त कीजिये।
हे नाथ! हे नरवरोत्तम! हे दयालु सीतापते!आप कहाँ है,मेरी दशापर दृष्टिपात करे,प्रभो! आपका मुख स्वभावसे ही शोभासम्पन्न है उसपर भी सुन्दर कुण्डलो के कारणतो उसकी सुषमा औरभी बढ़ गयीहै।आप भक्तों की पीडाका नाश करनेवालेहै।हे मनोहर रूप धारण करनेवाले दयामय!मुझे इस बन्धनसे शीघ्र मुक्त कीजिये।
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हे नाथ! हे नरवरोत्तम! हे दयालु सीतापते!आप कहाँ है,मेरी दशापर दृष्टिपात करे,प्रभो! आपका मुख स्वभावसे ही शोभासम्पन्न है उसपर भी सुन्दर कुण्डलो के कारणतो उसकी सुषमा औरभी बढ़ गयीहै।आप भक्तों की पीडाका नाश करनेवालेहै।हे मनोहर रूप धारण करनेवाले दयामय!मुझे इस बन्धनसे शीघ्र मुक्त कीजिये।
मेरा तो करोड़ जन्मों तक यही हठ रहेगा कि या तो शिवजी को वरूँगी, नहीं तो कुमारी ही रहूँगी। स्वयं शिवजी सौ बार कहें, तो भी नारदजी के उपदेश को न छोड़ूँगी॥ (२/२)
मेरा तो करोड़ जन्मों तक यही हठ रहेगा कि या तो शिवजी को वरूँगी, नहीं तो कुमारी ही रहूँगी। स्वयं शिवजी सौ बार कहें, तो भी नारदजी के उपदेश को न छोड़ूँगी॥ (२/२)
हरतालिका तीज
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मेरा तो करोड़ जन्मों तक यही हठ रहेगा कि या तो शिवजी को वरूँगी, नहीं तो कुमारी ही रहूँगी। स्वयं शिवजी सौ बार कहें, तो भी नारदजी के उपदेश को न छोड़ूँगी॥ (२/२)
उठो, उठो, गोविंदा, ब्रह्मांड के भगवान, नींद छोड़ो। जब आप सो रहे होंगे, हे ब्रह्मांडनायक, यह संसार सो जाएगा। उठो, हे वराह, आपने पृथ्वी को अपने दाँतों से उठा लिया है। हे हिरण्याक्ष के जीवन का नाश करने वाले, तीनों लोकों में मंगल प्रदान करें।
उठो, उठो, गोविंदा, ब्रह्मांड के भगवान, नींद छोड़ो। जब आप सो रहे होंगे, हे ब्रह्मांडनायक, यह संसार सो जाएगा। उठो, हे वराह, आपने पृथ्वी को अपने दाँतों से उठा लिया है। हे हिरण्याक्ष के जीवन का नाश करने वाले, तीनों लोकों में मंगल प्रदान करें।

ग्यारस

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उठो, उठो, गोविंदा, ब्रह्मांड के भगवान, नींद छोड़ो। जब आप सो रहे होंगे, हे ब्रह्मांडनायक, यह संसार सो जाएगा। उठो, हे वराह, आपने पृथ्वी को अपने दाँतों से उठा लिया है। हे हिरण्याक्ष के जीवन का नाश करने वाले, तीनों लोकों में मंगल प्रदान करें।
माता तुलसी की पद्मपुराण, स्कन्दपुराण आदि में वर्णित कथा (पूर्वजन्म सहित), भगवान् को शालिग्राम (शिला) हो जाने का श्राप एवं तुलसीजी से विवाह का रहस्य-
माता तुलसी की पद्मपुराण, स्कन्दपुराण आदि में वर्णित कथा (पूर्वजन्म सहित), भगवान् को शालिग्राम (शिला) हो जाने का श्राप एवं तुलसीजी से विवाह का रहस्य-
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माता तुलसी की पद्मपुराण, स्कन्दपुराण आदि में वर्णित कथा (पूर्वजन्म सहित), भगवान् को शालिग्राम (शिला) हो जाने का श्राप एवं तुलसीजी से विवाह का रहस्य-
श्रीमद्भागवत में उद्धव जी से ज्ञान चर्चा में भगवान श्री कृष्ण बताते हैं कि ब्रह्मर्षियों में भृगु, राजर्षियों में मनु, देवर्षियों में नारद और गौओं में कामधेनु मैं ही हूँ।
श्रीमद्भागवत में उद्धव जी से ज्ञान चर्चा में भगवान श्री कृष्ण बताते हैं कि ब्रह्मर्षियों में भृगु, राजर्षियों में मनु, देवर्षियों में नारद और गौओं में कामधेनु मैं ही हूँ।
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श्रीमद्भागवत में उद्धव जी से ज्ञान चर्चा में भगवान श्री कृष्ण बताते हैं कि ब्रह्मर्षियों में भृगु, राजर्षियों में मनु, देवर्षियों में नारद और गौओं में कामधेनु मैं ही हूँ।