वनवास जाने से पूर्व श्री रामचंद्रजी की त्रिजट नामक ब्राह्मण पर कृपा। (वाल्मीकि रामायण)
Articles
बाबा खाटूश्याम (महारथी बर्बरीक) की सम्पूर्ण कथा-
नागपंचमी की कथा, महात्म्य एवं विधान (१/२)
भगवान् श्रीविष्णु के आठवें अवतार, महाराज भरत के पिता एवं जैन धर्म के आदितीर्थंकर भगवान् श्री ऋषभदेव जी (१/२)
अजनाभं नामैतद्वर्षं भारतमिति यत आरभ्य व्यपदिशन्ति। (श्रीमद्भागवत ५.७.३)
मरकत मृदुल कलेवर स्यामा। अंग अंग प्रति छबि बहु कामा॥
— Vyas (@da_vyas)
सकुचत सकृत प्रणाम सो
शुक और सारण जैसे नरभक्षक दैत्य भी भगवान के सन्मुख होकर ऋषि बन जाते है- (थ्रेड)
विभीषण जी का प्रसंग
गमन बिदेस न लेस कलेसको, सकुचत सकृत प्रनाम सो।
भगवान् का संकोची स्वभाव
याज्ञवल्क्य जी भरद्वाज जी से कहते है, श्रीराम जी की कथा चंद्रमा की किरणों के समान है, जिसे संतरूपी चकोर सदा पान करते हैं। ऐसा ही संदेह पार्वतीजी ने भी किया था, तब महादेव ने विस्तार से उसका उत्तर दिया था।
शिव पार्वती संवाद
श्री भैरव महाराज के इन दस नामों क्रमशः, कपाली, कुण्डली, भीम, भैरव, भीमविक्रम, व्यालोपवीती, कवची, शूली, शूर तथा शिवप्रिय, का जो प्रातःकाल उठकर पाठ करता है, उसे न कभी कोई भैरवी यातना होती है और न कोई सांसारिक भय होता है।
चित्रकेतु व भगवान श्रीशेष जी
कोणार्क सूर्य मंदिर एवं वेदों में भगवान् सूर्य (१/२)
माता पार्वती की अत्यंत कठोर तपस्या से आकाशवाणी हुई कि, हे पर्वतराज कुमारी! तेरा मनोरथ सफल हुआ। तू अब सारे असह्य कठिन तप त्याग दे। अब तुझे शिवजी मिलेंगे॥ हे भवानी! धीर, मुनि और ज्ञानी बहुत हुए हैं, पर ऐसा (कठोर) तप किसी ने नहीं किया।
श्रीसूर्यनारायण भगवान् की प्रसन्नता एवं शत्रुनाश के लिए रविवार वृत करने का विधान-