अढ़ुकि परहिं फिरि हेरहिं पीछें। राम बियोगि बिकल दु:ख तीछें॥
Ayodhya Kand
मागी नाव न केवटु आना। कहइ तुम्हार मरमु मैं जाना॥
जगतामादिभूतस्त्वं जगत्त्वं जगदाश्रयः।
करम बचन मन छाड़ि छलु जब लगि जनु न तुम्हार।
जेहिं पद सुरसरिता परम पुनीता प्रगट भई सिव सीस धरी।
ननाम राघवोऽहल्यां रामोऽहमिति चाब्रवीत् ।
जेहिं पद सुरसरिता परम पुनीता प्रगट भई सिव सीस धरी।
गौतम नारि श्राप बस उपल देह धरि धीर।
जेहिं पद सुरसरिता परम पुनीता प्रगट भई सिव सीस धरी। सोई पद पंकज जेहि पूजत अज मम सिर धरेउ कृपाल हरी॥
सुनि मारीच निसाचर क्रोही। लै सहाय धावा मुनिद्रोही॥
जौं नहिं फिरहिं धीर दोउ भाई। सत्यसंध दृढ़ब्रत रघुराई॥
मैं गंगा तट का सेवक हूँ, तुम भवसागर के स्वामी हो।
छुअत सिला भइ नारि सुहाई। पाहन तें न काठ कठिनाई॥
केवट उतरि दंडवत कीन्हा। प्रभुहि सकुच एहि नहिं कछु दीन्हा॥
पद नख निरखि देवसरि हरषी। सुनि प्रभु बचन मोहँ मति करषी॥
जासु नाम सुमरत एक बारा। उतरहिं नर भवसिंधु अपारा।।
ए प्रिय सबहि जहाँ लगि प्रानी। मन मुसुकाहिं रामु सुनि बानी॥
दुइ बरदान भूप सन थाती। मागहु आजु जुड़ावहु छाती॥
दशरथ जी के कैकई माता को दिए दो वरदान
वन में जाए ताड़का मारी । चरण छुआए अहिल्या तारी॥
परिहरि रामु सीय जग माहीं। कोउ न कहिहि मोर मत नाहीं॥
जिन्ह के चरन सरोरुह लागी। करत बिबिध जप जोग बिरागी॥
जिन्ह के चरन सरोरुह लागी। करत बिबिध जप जोग बिरागी॥
राम चलत अति भयउ बिषादू। सुनि न जाइ पुर आरत नादू॥
रायँ राम राखन हित लागी। बहुत उपाय किए छलु त्यागी॥
सुमिरि महेसहि कहइ निहोरी। बिनती सुनहु सदासिव मोरी॥
भाव सहित खोजइ जो प्रानी। पाव भगति मनि सब सुख खानी॥
सबहिं बिचारु कीन्ह मन माहीं। राम लखन सिय बिनु सुखु नाहीं॥