परम मनोहर चरित अपारा। करत फिरत चारिउ सुकुमारा॥
Baal Kand
जासु सनेह सकोच बस राम प्रगट भए आई।
करतल बान धनुष अति सोहा। देखत रूप चराचर मोहा॥
गुरु वशिष्ठजी की गोद मे श्रीराम
मुनि धीर जोगी सिद्ध संतत बिमल मन जेहि ध्यावहीं।
अति प्रेम अधीरा पुलक शरीरा मुख नहिं आवइ बचन कही।
सम्पूर्ण सिद्धिदायक माता अहल्या कृत स्तुति
बंदउँ बालरूप सोइ रामू। सब सिधि सुलभ जपत जिसु नामू॥
प्रेम मगन कौसल्या निसि दिन जात न जान।
मागहु भूमि धेनु धन कोसा। सर्बस देउँ आजु सहरोसा॥
ब्यापक ब्रह्म निरंजन निर्गुन बिगत बिनोद।
शापवश मुनिवधू-मुक्तकृत, विप्रहित, यज्ञ-रक्षण-दक्ष, पक्षकर्ता।
भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।
कौसल्या जब बोलन जाई। ठुमुकु ठुमुकु प्रभु चलहिं पराई॥
माथे हाथ ऋषि जब दियो राम किलकन लागे।
नाथ सुहृद सुठि सरल चित सील सनेह निधान।
जाकी सहज स्वास श्रुति चारी। सो हरि पढ़ यह कौतुक भारी॥
गुरगृहँ गए पढ़न रघुराई। अलप काल बिद्या सब आई॥
प्रात कहा मुनि सन रघुराई। निर्भय जग्य करहु तुम्ह जाई॥
जेहिं ताड़का सुबाहु हति खंडेउ हर कोदंड।
सुंदर श्रवन सुचारु कपोला। अति प्रिय मधुर तोतरे
भुज बिसाल भूषन जुत भूरी। हियँ हरि नख अति सोभा रूरी॥
करतल बान धनुष अति सोहा। देखत रूप चराचर मोहा॥
राम चलत अति भयउ बिषादू। सुनि न जाइ पुर आरत नादू॥
जो गौतम मुनिकी स्त्री अहल्याको शापसे मुक्त करनेवाले, विश्वामित्रके यज्ञकी रक्षा करनेमें बड़े चतुर और अपने भक्तोंका पक्ष करनेवाले है तथा राजा जनककी सभामें शिवजी का धनुष तोड़कर महान् तेजस्वी एवं क्रोधी परशुरामजीके गर्व को हरण करनेवाले हैं ॥
अंसन्ह सहित देह धरि ताता। करिहउँ चरित भगत सुखदाता॥
बंदउँ बालरूप सोइ रामू। सब सिधि सुलभ जपत जिसु नामू॥
राम, भरत, लद्धिमन ललित, सत्रुसमन सुभ नाम।
ब्यापक ब्रह्म निरंजन निर्गुन बिगत बिनोद।
ब्यापक ब्रह्म निरंजन निर्गुन बिगत बिनोद ।
ब्यापक ब्रह्म निरंजन निर्गुन बिगत बिनोद।