Bhagwan ke Bhakt

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फिर ये चित्रकेतु शिवजी का व्यंग करते है तो पार्वतीजी क्रोधित होकर इनको राक्षस होने का श्राप दे देती है, और ये वृत्तासुर बन जाते है।
फिर ये चित्रकेतु शिवजी का व्यंग करते है तो पार्वतीजी क्रोधित होकर इनको राक्षस होने का श्राप दे देती है, और ये वृत्तासुर बन जाते है।
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फिर ये चित्रकेतु शिवजी का व्यंग करते है तो पार्वतीजी क्रोधित होकर इनको राक्षस होने का श्राप दे देती है, और ये वृत्तासुर बन जाते है।
वह भक्ति स्वतंत्र है, उसको (ज्ञान-विज्ञान आदि किसी) दूसरे साधन का सहारा (अपेक्षा) नहीं है। ज्ञान और विज्ञान तो उसके अधीन हैं। हे तात! भक्ति अनुपम एवं सुख की मूल है और वह तभी मिलती है, जब संत अनुकूल (प्रसन्न) होते हैं॥
वह भक्ति स्वतंत्र है, उसको (ज्ञान-विज्ञान आदि किसी) दूसरे साधन का सहारा (अपेक्षा) नहीं है। ज्ञान और विज्ञान तो उसके अधीन हैं। हे तात! भक्ति अनुपम एवं सुख की मूल है और वह तभी मिलती है, जब संत अनुकूल (प्रसन्न) होते हैं॥
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वह भक्ति स्वतंत्र है, उसको (ज्ञान-विज्ञान आदि किसी) दूसरे साधन का सहारा (अपेक्षा) नहीं है। ज्ञान और विज्ञान तो उसके अधीन हैं। हे तात! भक्ति अनुपम एवं सुख की मूल है और वह तभी मिलती है, जब संत अनुकूल (प्रसन्न) होते हैं॥