कृतजुग त्रेताँ द्वापर पूजा मख अरु जोग।
Bhagwan ke Bhakt
तासु श्राप हरि दीन्ह प्रमाना। कौतुकनिधि कृपाल भगवाना॥
जाना चहहिं गूढ़ गति जेऊ। नाम जीहँ जपि जानहिं तेऊ॥
परम श्रद्धेय भाईजी श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार जी।
राम भगत जग चारि प्रकारा। सुकृती चारिउ अनघ उदारा॥
ध्रुवँ सगलानि जपेउ हरि नाऊँ। पायउ अचल अनूपम ठाऊँ॥
नारद जानेउ नाम प्रतापू। जग प्रिय हरि हरि हर प्रिय आपू॥