माता मंगला गौरी को समर्पित श्रावण मंगलवार व्रत कथा महात्म्य एवं विधान (१/२)
Bhagwati
भगवती
या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मीः पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः।
ॐ घण्टाशूलहलानि शङ्खमुसले चक्रं धनुः सायकं हस्ताब्जैर्दधतीं घनान्तविलसच्छीतांशुतुल्यप्रभाम्।
सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने ।
वीणा वादिनी
जगदम्बा
सदा संभु अरधंग निवासिनि..
भगवती
जग संभव पालन लय कारिनि..
भगवती कालरात्रि
भगवती महिषासुरमर्दिनि
भगवती
भगवती
भगवती
सदा संभु अरधंग निवासिनि॥
देवी मातंगी
विधिवल्लभा
मगन ध्यान रस दंड जुग पुनि मन बाहेर कीन्ह।
भगवती
बेल पाती महि परइ सुखाई। तीनि सहस संबत सोइ खाई॥
पुनि बंदउँ सारद सुरसरिता। जुगल पुनीत मनोहर चरिता॥
पुनि बंदउँ सारद सुरसरिता। जुगल पुनीत मनोहर चरिता॥
सिंहासनगता नित्यं पद्मान्वितकरद्वया।
श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः ।
रूप- सुख-शील-सीमाऽसि, भीमाऽसि रामाऽसि, वामाऽसि वर बुद्धि बानी।
भवं भवानी सहितं नमामि
तुम्ह माया भगवान सिव सकल गजत पितु मातु।
शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे।
दुर्गा सप्तशती में "नमस्तस्यै" शब्द की पुनरावृत्ति का रहस्य (1/2)