पंचमुखी महादेव (१/२)
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पंचमुखी महादेव (२/२)
हनुमान् जी का पंचमुखी अवतार (२/२)
कनक बरन तन तेज बिराजा। मानहुँ अपर गिरिन्ह कर राजा॥
पंचमुखी हनुमानजी
है प्रभु परम मनोहर ठाऊँ। पावन पंचबटी तेहि नाऊँ॥
तजो भोगों की फलासक्ति का पूरा त्याग।
धर्म तें बिरति जोग तें ग्याना। ग्यान मोच्छप्रद बेद बखाना॥
जो गुन रहित सगुन सोइ कैसें। जलु हिम उपल बिलग नहिं जैसें॥
अगुण सगुण गुण मंदिर सुंदर, भ्रम तम प्रबल प्रताप दिवाकर।
जाको बालबिनोद समुझि जिय डरत दिवाकर भोरको।
पद पाताल सीस अज धामा। अपर लोक अँग अँग बिश्रामा॥
महि मंडल मंडन चारुतरं। धृत सायक चाप निषंग बरं।
नीले मेघ के समान श्याम शरीर वाले सगुण रूप श्री रामजी! सीताजी और छोटे भाई लक्ष्मणजी सहित प्रभु (आप) निरंतर मेरे हृदय में निवास कीजिए॥
श्री सीताराम जी के ११ स्वरूपों का ध्यान
सीता अनुज समेत प्रभु नील जलद तनु स्याम।
श्री सीतारामजी के ११ स्वरूप
हरिहर
सुमिरि कोसलाधीस प्रतापा । सर संधान कीन्ह करि दापा॥
दीपावली की पूजन विधि-
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे
दूर्वा दलद्युति तनुं तरुणाब्ज नेत्रं, हेमाम्बरं बर विभूषण भूषिताङ्गम्।
अति अनूप जहँ जनक निवासू। बिथकहिं बिबुध बिलोकि बिलासू॥
ए प्रिय सबहि जहाँ लगि प्रानी। मन मुसुकाहिं रामु सुनि बानी॥
रावण का पूर्णसत्य (Thread)
नहिं कलि करम न भगति बिबेकू। राम नाम अवलंबन एकू॥
लियो उठाय कुधर कंदुक-ज्यौं, बेग न जाइ बखानि।
चलयो हनुमानु, सुनि जातुधानु कालनेमि।
सर पैठत कपि पद गहा मकरीं तब अकुलान।
जब जब होई धरम की हानि, बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी।
निगम नेति सिव ध्यान न पावा। मायामृग पाछें सो धावा॥
निगम नेति सिव ध्यान न पावा। मायामृग पाछें सो धावा॥
निगम नेति सिव ध्यान न पावा। मायामृग पाछें सो धावा॥