मुनि जेहि ध्यान न पावहिं नेति नेति कह बेद।
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मारुत सुत मैं कपि हनुमाना। नामु मोर सुनु कृपानिधाना॥
जनकसुता समेत प्रभु सोभा अमित अपार ।
प्रेमातुर सब लोग निहारी। कौतुक कीन्ह कृपाल खरारी॥
भरतादि अनुज बिभीषनांगद हनुमदादि समेत ते।
राघवं रामचंद्रम च रावणारिं रमापतिम्।
राघवं रामचन्दं च रावणारिं रमापतिम्।
राघवं रामचन्दं च रावणारिं रमापतिम् ।
चतुर्भुजं चिदानन्दं मल्लचाणूरमर्दनम्।
आशुतोष शशाँक शेखर, चन्द्र मौली चिदंबरा..
करतल बान धनुष अति सोहा। देखत रूप चराचर मोहा॥
शिवतत्त्व और शिवोपासना
रुद्रो नाम स विज्ञातो लोकानुग्रहकारकः । ध्यानार्थ चैव सर्वेषामरूपो रूपवानभूत् ॥
शिवतत्त्व उपासना
शूल पानी त्रिशूल धारी, औगड़ी बाघम्बरी..
खोजत नंद चकित चहुँ दिसि तैं अचरज सौ कछु भाई। कहाँ गए मेरे इष्ट देवता को लै गयौ उठाई।
श्री नन्द बाबा के इष्टदेव शालिग्राम जी
खायो कालकूटु भयो अजर अमर तनु,
भगवान् शिव के परमप्रिय प्रदोषकाल का महत्व, रहस्य एवं व्रत का शास्त्रोक्त विधान-
भगवान् शिव के परमप्रिय प्रदोषकाल का महत्व, रहस्य एवं व्रत का शास्त्रोक्त विधान (१/२)
भगवान् शिव का नित्यधाम श्री महाकैलास (२/२)
भगवान् शिव का नित्यधाम श्री महाकैलास (१/२)
एकमूर्ती द्विधा भिन्नौ संसारार्णवतारकौ ।
भगवान् श्री हरिहर
श्रीरामचरितमानस में शिव तत्व- (2/2)
तुम्हरें जान कामु अब जारा। अब लगि संभु रहे सबिकारा॥
जन्म जन्म मुनि जतनु कराहीं। अंत 'राम' कहि आवत नाहीं॥
अतएव रामनाम काश्यां विश्वेश्वरः सदा।
काशी मुक्ति
मुमूषर्मणिकर्ण्य तु अर्धोदकनिवासिनः।
इस प्रकार नाम ब्रह्म और राम दोनों से बड़ा है। यह वरदान देने वालों को भी वर देनेवाला है। शिव ने अपने हृदय में यह जानकर ही सौ करोड़ राम चरित्र में से इस 'राम' नाम को ग्रहण किया है॥
शिवजी का तारक मंत्र
ब्रह्म राम तें नामु बड़ बर दायक बर दानि।
योगेश्वराखिलगुरो भगवन् नमस्ते।
कालात्मना भगवता शक्रदर्पं जिघांसता।