प्रभु पहिचानि परेउ गहि चरना। सो सुख उमा जाइ नहिं बरना॥
Kishkindha kand
रिपु सम मोहि मारेसि अति भारी। हरि लीन्हसि सर्बसु अरु नारी॥
सुनत राम अति कोमल बानी। बालि सीस परसेउ निज पानी॥
करि बिनती मंदिर लै आए। चरन पखारि पलँग बैठाए॥
कर परसा सुग्रीव सरीरा । तनु भा कुलिस गई सब पीरा॥
सुनु हनुमंत संग लै तारा। करि बिनती समुझाउ कुमारा॥
धनुष चढ़ाइ कहा तब जारि करउँ पुर छार। ब्याकुल नगर देखि तब आयउ बालिकुमार॥
रिपु सम मोहि मारेसि अति भारी। हरि लीन्हसि सर्बसु अरु नारी॥
आगें चले बहुरि रघुराया। रिष्यमूक पर्बत निअराया॥
सेवक सठ नृप कृपन कुनारी। कपटी मित्र सूल सम चारी॥
प्रभु पहिचानि परेउ गहि चरना। सो सुख उमा जाइ नहिं बरना॥
जो कछु कहेहु सत्य सब सोई। सखा बचन मम मृषा न होई॥
अब प्रभु कृपा करहु एहि भांति सब तजि भजन करौ दिन राति।
बहु छल बल सुग्रीव कर हियँ हारा भय मानि।
इत्येवं बहु भाषन्तं वालिनं राघवोऽब्रवीत्।
अब प्रभु कृपा करहु एहि भाँति। सब तजि भजनु करौं दिन राती॥
सुनु हनुमंत संग लै तारा। करि बिनती समुझाउ कुमारा॥
कह सुग्रीव सुनहु रघुबीरा। तजहु सोच मन आनहु धीरा॥
सुग्रीवजी ने कहा- हे रघुवीर! सुनिए। सोच छोड़ दीजिए और मन में धीरज लाइए। मैं सब प्रकार से आपकी सेवा करूँगा, जिस उपाय से जानकी जी आकर आपको मिलें॥
सखा सुग्रीव
सुनत राम अति कोमल बानी। बालि सीस परसेउ निज पानी॥