बर दायक प्रनतारति भंजन। कृपासिंधु सेवक मन रंजन।
Mahadev Shankar
शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे।
दुर्गा सप्तशती में "नमस्तस्यै" शब्द की पुनरावृत्ति का रहस्य (1/2)
तन छार ब्याल कपाल भूषन नगन जटिल भयंकरा।
प्रथमं शैलपुत्री च, द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
जग संभव पालन लय कारिनि। निज इच्छा लीला बपु धारिनि॥
भवानीशङ्करौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ।
कृष्णकाली
लेख
जाके बाहुदण्ड बलवारिधि-निमग्न हृैकै, शुंभ आदि सबै असुराधिप अथै गये।
अजा अनादि सक्ति अबिनासिनि। सदा संभु अरधंग निवासिनि॥
अजा अनादि सक्ति अबिनासिनि। सदा संभु अरधंग निवासिनि॥
जरत सकल सुर बृंद बिषम गरल जेहिं पान किय।
विनु छल बिस्वनाथ पद नेहू। राम भगत कर लच्छन एहू ॥
नमस्ते सिद्धसेनानि आयें मन्दरवासिनि।
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः।
शारदीय नवरात्र
जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी॥
तरुन अरुन अंबुज सम चरना। नख दुति भगत हृदय तम हरना॥
सिव समान प्रिय मोहि न दूजा।
गंगाधर
तरुन अरुन अंबुज सम चरना। नख दुति भगत हृदय तम हरना॥
मध्ये सुधाब्धिमणिमण्डपरत्नवेद्यां सिंहासनोपरिगतां परिपीतवर्णाम्।
जय सच्चिदानंद जग पावन। अस कहि चलेउ मनोज नसावन॥
लसत सरस सिंधुर-बदन, भालथली नखतेस।
गुर पितु मातु महेस भवानी। प्रनवउँ दीनबंधु दिन दानी॥
करि प्रनाम रामहि त्रिपुरारी। हरषि सुधा सम गिरा उचारी॥
संग रहे पार्वती, शिव देते उपदेश..
जय जय गिरिवर राज किशोरी। जय महेश मुख चन्द चकोरी।
रुद्राक्ष की उत्पत्ति की कथा (त्रिपुरासुर वध), धारण विधि एवं माहात्म्य (1/2)
सदा संभु अरधंग निवासिनि..
भगवान महामृत्युंजय-