भजं सगिरिजं त्र्यक्षं च मृत्युञ्जयम्॥
Mahadev Shankar
पंचमुखी महादेव (१/२)
जो गुन रहित सगुन सोइ कैसें। जलु हिम उपल बिलग नहिं जैसें॥
भगवान श्रीहरि को शंकरजी से सुदर्शन चक्र आज वैकुंठ चतुर्दशी के दिन प्राप्त हुआ था-
या श्रद्धा धारणा मेधा वाग्देवी विधिवल्लभा।
कतहुँ मुनिन्ह उपदेसहिं ग्याना। कतहुँ राम गुन करहिं बखाना॥
बिस्वनाथ मम नाथ पुरारी। त्रिभुवन महिमा बिदित तुम्हारी॥
आशुतोष शशाँक शेखर, चन्द्र मौली चिदंबरा..
रुद्रो नाम स विज्ञातो लोकानुग्रहकारकः । ध्यानार्थ चैव सर्वेषामरूपो रूपवानभूत् ॥
शिवतत्त्व उपासना
शूल पानी त्रिशूल धारी, औगड़ी बाघम्बरी..
खायो कालकूटु भयो अजर अमर तनु,
भगवान् शिव के परमप्रिय प्रदोषकाल का महत्व, रहस्य एवं व्रत का शास्त्रोक्त विधान (१/२)
भगवान् शिव का नित्यधाम श्री महाकैलास (१/२)
एकमूर्ती द्विधा भिन्नौ संसारार्णवतारकौ ।
भगवान् श्री हरिहर
तुम्हरें जान कामु अब जारा। अब लगि संभु रहे सबिकारा॥
जन्म जन्म मुनि जतनु कराहीं। अंत 'राम' कहि आवत नाहीं॥
अतएव रामनाम काश्यां विश्वेश्वरः सदा।
काशी मुक्ति
मुमूषर्मणिकर्ण्य तु अर्धोदकनिवासिनः।
इस प्रकार नाम ब्रह्म और राम दोनों से बड़ा है। यह वरदान देने वालों को भी वर देनेवाला है। शिव ने अपने हृदय में यह जानकर ही सौ करोड़ राम चरित्र में से इस 'राम' नाम को ग्रहण किया है॥
शिवजी का तारक मंत्र
कृष्णवामांसभूतायै कृष्णायै सततं नमः।
यमुना मैया
श्री ललितामहात्रिपुरसुंदरी
सो नर इंद्रजाल नहिं भूला। जा पर होइ सो नट अनुकूला॥
काली काली महाकाली कालिके परमेश्वरी ।
शारवाना-भावाया नमः ज्ञानशक्तिधरा स्कंदा वल्लीईकल्याणा सुंदरा, देवसेना मनः कांता कार्तिकेया नमोस्तुते।।
बृहस्पतिर्मन्त्रविद्धि जजाप च जुहाव च।
तब जनमेउ षटबदन कुमारा। तारकु असुरु समर जेहिं मारा॥
कार्तिकेय-देवसेना (षष्ठी देवी) का विवाह
मयूरासीन श्री स्वामी कार्तिकेय का दुर्लभ चित्र।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥
सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायनी पुरारी पिआरी॥
अत्रिपत्नी महाभागा दयाक्षान्त्यादिभूषिता।