सहस नाम सम सुनि सिव बानी। जपि जेईं पिय संग भवानी॥
Mahadev Shankar
जथा भूमि सब बीजमय नखत निवास अकास।
नाम प्रसाद संभु अबिनासी। साजु अमंगल मंगल रासी॥
रामकथा ससि किरन समाना। संत चकोर करहिं जेहि पाना॥
यथा भर्तृसमं नान्यमहं पश्यामि दैवतम्। तेन सत्येन विप्रोऽयं पुनर्जीवत्वनामयः॥
माता अनुसूया
जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी॥
यस्य निःश्वसितं वेदा यो वेदेभ्योऽखिलं जगत् ।
अजा अनादि सक्ति अबिनासिनि। सदा संभु अरधंग निवासिनि॥
अजा अनादि सक्ति अबिनासिनि। सदा संभु अरधंग निवासिनि॥
जय सच्चिदानंद जग पावन। अस कहि चलेउ मनोज नसावन॥
जौं तपु करै कुमारि तुम्हारी। भाविउ मेटि सकहिं त्रिपुरारी॥
मैं पा परउँ कहइ जगदंबा। तुम्ह गृह गवनहु भयउ बिलंबा॥
जन्म कोटि लगि रगर हमारी। बरउँ संभु न त रहउँ कुआरी॥
एक कलप सुर देखि दुखारे। समर जलंधर सन सब हारे॥
वन्दे महानन्दमनन्तलीलं महेश्वरं सर्वविभुं महान्तम्।
यस्य निःश्वसितं वेदा यो वेदेभ्योऽखिलं जगत्। निर्ममे तमहं वन्दे विद्यातीर्थं महेश्वरम् ॥
तदेव लिङ्गं प्रथमं प्रणवं सार्वकामिकम्।
बिस्वनाथ मम नाथ पुरारी। त्रिभुवन महिमा बिदित तुम्हारी॥
नाथ नागेश्वर हरो हर पाप साप अभिशाप तम।
लिंग थापि बिधिवत करि पूजा। सिव समान प्रिय मोहि न दूजा॥
होइ अकाम जो छल तजि सेइहि। भगति मोरि तेहि संकर देइहि।।
सिव द्रोही मम भगत कहावा। सो नर सपनेहुँ मोहि न पावा॥
सेतुबन्धे च रामेशं घुश्मेशं च शिवालये॥
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
यं यं यं यक्षरूपं दशदिशिविदितं भूमिकम्पायमानं, सं सं संहारमूर्तिं शिरमुकुटजटाशेखरं चन्द्रबिम्बम् ।।
जाना राम सतीं दुखु पावा। निज प्रभाउ कछु प्रगटि जनावा॥
राम चरित जे सुनत अघाहीं। रस बिसेष जाना तिन्ह नाहीं॥
जे रामेस्वर दरसनु करिहहिं। ते तनु तजि मम लोक सिधरिहहिं॥
धर्मसील बिरक्त अरु ग्यानी। जीवनमुक्त ब्रह्मपर प्रानी।
नवधा भगति कहउँ तोहि पाहीं। सावधान सुनु धरु मन माहीं॥