लालची ललात, बिललात द्वार-द्वार दीन, बदन मलीन, मन मिटै ना बिसूरना।
Mahadev Shankar
करि प्रनाम रामहि त्रिपुरारी। हरषि सुधा सम गिरा उचारी॥
झूठेउ सत्य जाहि बिनु जानें। जिमि भुजंग बिनु रजु पहिचानें॥
सत्य कहेहु गिरिभव तनु एहा। हठ न छूट छूटै बरु देहा॥
झूठेउ सत्य जाहि बिनु जानें। जिमि भुजंग बिनु रजु पहिचानें॥
अस तपु काहुँ न कीन्ह भवानी। भए अनेक धीर मुनि ग्यानी॥
पराम्बा भगवती पार्वती का तपोवृत
कपाली कुण्डली भीमो भैरवो भीमविक्रमः । व्यालोपवीती कवची शूली शूरः शिवप्रियः ॥
श्री भैरवनाथ की उपासना
माता पार्वती की अत्यंत कठोर तपस्या से आकाशवाणी हुई कि, हे पर्वतराज कुमारी! तेरा मनोरथ सफल हुआ। तू अब सारे असह्य कठिन तप त्याग दे। अब तुझे शिवजी मिलेंगे॥ हे भवानी! धीर, मुनि और ज्ञानी बहुत हुए हैं, पर ऐसा (कठोर) तप किसी ने नहीं किया।
दुर्गा नारायणीशाना विष्णुमाया शिवा सती ॥
दुर्गाजी की उत्पत्ति की कथा
ॐ घण्टाशूलहलानि शङ्खमुसले चक्रं धनुः सायकं हस्ताब्जैर्दधतीं घनान्तविलसच्छीतांशुतुल्यप्रभाम्।
बिस्वनाथ मम नाथ पुरारी। त्रिभुवन महिमा बिदित तुम्हारी॥
स्वाहाकारः स्वधा चैव कला काष्ठा सरस्वती।
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।
सा राम प्रकृतिः प्रोक्ता शिवेच्छा पारमेश्वरी जगन्मायेति विख्याता स्पन्दशक्तिरकृत्रिमा ॥