'सत्य सपथ करुनानिधान की'
Shri Hanumanji
जानि राम सेवा सरस समुझि करब अनुमान।
एकु मैं मंद मोहबस कुटिल हृदय अग्यान।
मोर न्याउ मैं पूछा साईं। तुम्ह पूछहु कस नर की नाईं॥
सुख मुद मंगल कुमुद बिधु सुगुन सरोरुह भानु।
बचन काँय मन मम गति जाही। सपनेहुँ बूझिअ बिपति कि ताही।।
जयति मंगलागार, संसारभारापहर, वानराकारविग्रह पुरारी।
'येन केन प्रकारेण रामे बुद्धिं निवेशयेत्।'
सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपने बस करि राखे रामू॥
विक्रान्तस्त्वं समर्थस्त्वं प्राज्ञस्त्वं वानरोत्तम।
सूर सिरोमनि साहसी सुमति समीर कुमार।
श्रीशुकदेवजी कहते है, राजन् किम्पुरुषवर्ष मे श्रीलक्ष्मणजी के बड़े भाई, आदिपुरुष सीताहृदयाभिराम भगवान् श्रीरामजी के चरणो की सन्निधि के रसिक परम भागवत श्रीहनुमान्जी अन्य सेवको सहित अविचल भक्तिभावसे उनकी उपासना कर अन्य गन्धर्वो सहित आर्षृिषेण भगवान् श्रीरामजी की गुणगाथा गाते है।
श्री हनुमानजी कृत श्री रामचन्द्र जी की परमपावन स्तुति
सब सुख लहै तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू को डरना।
समदरसी मोहि कह सब कोऊ। सेवक प्रिय अनन्य गति सोऊ॥
कनक बरन तन तेज बिराजा। मानहुँ अपर गिरिन्ह कर राजा॥
हनूमान सम नहिं बड़भागी। नहिं कोउ राम चरन अनुरागी॥
हनुमानजी का सीना चीरना
भगवान् श्री रामचंद्रजी ने घोषणा करवा दी, "जो मंगलवार को मेरे अनन्यप्रीतिभाजन महावीर श्री हनुमानजी को जो तेल और सिन्दूर चढ़ायेंगे, उन्हें मेरी प्रसन्नता प्राप्त होगी और उनकी समस्त कामनाओंकी पूर्ति हो जाया करेगी।"
हनुमानजी को सिंदूर चढ़ाए जाने का रहस्य
सब जानत प्रभु प्रभुता सोई। तदपि कहें बिनु रहा न कोई॥
हनूमान सम नहिं बड़भागी। नहिं कोउ राम चरन अनुरागी॥
कुम्भकरन-रावन पयोद-नाद-ईंधन को, तुलसी प्रताप जाको प्रबल अनल भो।
सिंहनाद करि बारहिं बारा। लीलहिं नाघउँ जलनिधि खारा॥
मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान।
पवनतनय मन भा अति क्रोधा। गर्जेउ प्रबल काल सम जोधा॥
सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपने बस करि राखे रामू॥
भारत के कुछ अत्यंत दुर्लभ प्रमुख हनुमान मंदिरों की सूची और संक्षिप्त कथाएं- (1/2)
बुद्धि विवेक विज्ञान निधाना
भगवान् श्रीराम द्वारा श्रीहनुमानजी का गर्व भंग
पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना॥
संकटमित्र हनुमानजी
मोर न्याउ मैं पूछा साईं। तुम्ह पूछहु कस नर की नाईं॥
समदरसी मोहि कह सब कोऊ। सेवक प्रिय अनन्य गति सोऊ॥
सुनु कपि जियँ मानसि जनि ऊना। तैं मम प्रिय लछिमन ते दूना॥
दूने प्रिय क्यों?