ज्ञानिनामग्रगण्यं
Shri Hanumanji
संकट समाज असमंजस भो रामराज, काज जुग पूगनि को करतल पल भो।
शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जग वंदन॥
देखा श्रमित बिभीषनु भारी। धायउ हनूमान गिरि धारी॥
गोस्वामी तुलसीदास जी कृत हनुमान जी का अचूक मंत्रात्मक काव्य हनुमान बाहुक
तुम्हरो मंत्र विभीषण माना, लंकेस्वर भए सब जग जाना॥
तुम्हारो मंत्र विभीषण माना का अर्थ
सहित सहाय रावनहि मारी। आनउँ इहाँ त्रिकूट उपारी॥
लील्यो उखारि पहारू बिसाल, चल्यो तेहि काल, बिलंबु न लायो।
ता कहुँ प्रभु कछु अगम नहिं जा पर तुम्ह अनुकूल।
मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान।
अंगद अरु हनुमंत प्रबेसा। कीन्ह दुर्ग अस कह अवधेसा॥
अघटित-घटन, सुघट-बिघटन, ऐसी बिरुदावलि नहिं आनकी। सुमिरत संकट-सोच-बिमोचन, मूरति मोद-निधानकी ॥
कनक बरन तन तेज बिराजा। मानहुँ अपर गिरिन्ह कर राजा॥
पंचमुखी हनुमानजी
जाको बालबिनोद समुझि जिय डरत दिवाकर भोरको।
नहिं कलि करम न भगति बिबेकू। राम नाम अवलंबन एकू॥
रामसेतु बनाते समय श्री रामजी ने समुद्र में एक पत्थर को बिना 'राम नाम' लिखे ऐसे ही 'छोड़' दिया, वह पत्थर डूब गया तब हनुमानजी ने कहा कि प्रभु आपका नाम लिखने से तो पाषाण भी तैर(तर) जाते है, परंतु यदि जिसको आपने ही 'छोड़' दिया तो उसका डूबना तो निश्चित ही है।
कल्पान्ते मम सायुज्यं प्राप्स्यसे नात्र संशयः।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता, अस बर दीन जानकी माता॥
आश्विनस्यासिते पक्षे भूतायां च महानिशि।
जयति वेदान्तविद विविध-विद्या-विशद, वेद-वेदांगविद ब्रह्मवादी।
नारदपुराण में वर्णित विभिन्न मंत्रों द्वारा श्रीहनुमानजी की उपासना एवं उनका दर्शन प्राप्त करने की मंत्र-साधना, दीपदान की विधि (२/२)-
कपि देखा दारुन भट आवा। कटकटाइ गर्जा अरु धावा ||
कल्पान्ते मम सायुज्यं प्राप्स्यसे नात्र संशयः।
पुरस्कार वितरण
दासोऽहं कोसलेन्द्रस्य रामस्याक्लिष्टकर्मणः।
दास्य भक्ति के आचार्य
राम त्वत्तोऽधिकं नाम इति मे निश्चिता मतिः।
हनूमंस्ते प्रसन्नोऽस्मि वरं वरय काङ्क्षितम्।
हा नाथ हा नरवरोत्तम हा दयालो सीतापते रुचिरकुण्डलशोभिवक्त्र ।
ज्ञानिनामग्रगण्यम्
भानुसों पढ़न हनुमान गये भानु मन- अनुमानि सिसुकेलि कियो फेरफार सो।
संकर सुवन केसरीनंदन। तेज प्रताप महा जग बन्दन॥
जन्म की विभिन्न कथाएं