सो अनन्य जाकें असि मति न टरइ हनुमंत।
Shri Hanumanji
देखा श्रमित बिभीषनु भारी। धायउ हनूमान गिरि धारी॥
वासुदेवो भगवतां त्वं तु भागवतेष्वहम्।
कनक बरन तन तेज बिराजा। मानहुँ अपर गिरिन्ह कर राजा॥
अंजना नंदनं वीरं जानकी शोकनाशनम् ।
गोष्पदी-कृत-वारीशं मशकी-कृत-राक्षसम् । रामायण-महामाला-रत्नं वन्देऽनिलात्मजम् ॥
श्रीरामजी के अनन्य सेवक श्रीपवनकुमार के स्पर्श से देवी तो पाताल में प्रविष्ट हो गयीं और उनके स्थान पर स्वयं श्रीरामदूत देवी रूप में भयानक मुख फाड़कर खड़े हो गये और अहिरावण जितनी सामग्री देवी को अर्पित करता वे सब हनुमानजी ग्रहण कर लेते थे।
एहि बिधि सकल कथा समुझाई। लिए दुऔ जन पीठि चढ़ाई॥
ब्रह्म राम साकार बने जब प्रेम पुरातन चीनौ।
हनूमानपि तं प्राह नत्वा रामं प्रहृष्टधीः ।
उपजइ राम चरन बिस्वासा। भव निधि तर नर बिनहिं प्रयासा॥
मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा। पंचम भजन सो बेद प्रकासा॥
गुरुशिष्य
त्यागहिं कर्म सुभासुभ दायक। भजहिं मोहि सुर नर मुनि नायक॥
वाञ्छितार्थं प्रदास्यामि भक्तानां राघवस्य तु।
कलिजुग जोग न जग्य न ग्याना। एक अधार राम गुन गाना॥
भाव सहित खोजइ जो प्रानी। पाव भगति मनि सब सुख खानी॥