श्रीजानकी नवमी की पूजन विधि एवं व्रतोत्सव-(१/२)
Shri Sita Ji
आगें राम अनुज पुनि पाछें। मुनि बर बेष बने अति काछें॥
भगवती
पुरुषारथ स्वारथ सकल परमारथ परिनाम।
कह त्रिजटा सुनु राजकुमारी। उर सर लागत मरइ सुरारी॥
सुनहु प्रिया ब्रत रुचिर सुसीला। मैं कछु करबि ललित नरलीला ॥
धरि रूप पात्रक पानि गहि श्री सत्य स्रुति जग विदित जो।
श्रुति सेतु पालक राम तुम्ह जगदीस माया जानकी। जो सृजति जगु पालति हरति रुख पाइ कृपानिधान की॥
राम बाम दिसि जानकी, लखन दाहिनी ओर ।
एक अनीह अरूप अनामा। अज सच्चिदानंद पर धामा॥
असंदेशात्तु रामस्य तपसश्चानुपालनात् ।
शक्या लोभयितुं नाहमैश्वर्येण धनेन वा।
जनकसुता जग जननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की॥
श्री रामचरितमानस में शक्ति तत्व निरूपण- (१/२)
बाम भाग सोभति अनुकूला। आदिसक्ति छबिनिधि जगमूला॥
जयति श्रीजानकी भानुकुल- भानुकी प्राणप्रियवल्लभे तरणि भूपे।
साक्षाज्जगद्धेतुश्चिच्छक्तिर्जगदात्मिका
एष रामः परो विष्णुरादिनारायणः स्मृतः।
एतदत्स्यसि मद्धस्तान्न त्वां बाधिष्यते शुभे ।
कबहुँ समय सुधि द्यायबी, मेरी मातु जानकी।
जनकसुता जग जननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की॥
देखि मनहि महुँ कीन्ह प्रनामा। बैठेहिं बीति जात निसि जामा॥
राघवं रामचंद्रम च रावणारिं रमापतिम्।
जनकसुता जग जननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की॥
देखि मनहि महुँ कीन्ह प्रनामा। बैठेहिं बीति जात निसि जामा॥
नाम पाहरू दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
न्यासभूतं तदा न्यस्तमस्माकं पूर्वजे विभौ।
उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम्।
जगतजननी भगवती श्री सीता जी का अवतरण (२/३)
जगतजननी माता सीताजी का (अवतरण का हेतु) सांसारिक जीवों पर स्नेह (३/३)
जनकात्मजे राघवप्रिये कनकभासुरे भक्तपालिके।