सीताजी कहती है, हा ईश्वर । तुमने यह क्या किया और क्या करनेका विचार है? चाहे जो हो, मैं रामको छोड़कर दूसरे किसीको नहीं वरूंगी। यदि मेरे पिता मुझे दूसरे किसी को देंगे तो मैं महलपर से गिरकर अवधा विष आदिके द्वारा शीघ्र प्राण त्याग दूंगी। (आनंद रामायण)
Shri Sita Ji
मैथिली जानकी सीता वैदेही जनकात्मजा।
ग्यान अखंड एक सीताबर। माया बस्य जीव सचराचर॥
जनकसुता जग जननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की॥
धन्य देस सो जहँ सुरसरी। धन्य नारि पतिब्रत अनुसरी॥
अगम पंथ बनभूमि पहारा । करि केहरि सर सरित अपारा॥