'सत्य सपथ करुनानिधान की'
SundarKand
जानि राम सेवा सरस समुझि करब अनुमान।
एकु मैं मंद मोहबस कुटिल हृदय अग्यान।
मोर न्याउ मैं पूछा साईं। तुम्ह पूछहु कस नर की नाईं॥
सुख मुद मंगल कुमुद बिधु सुगुन सरोरुह भानु।
हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास।
बचन काँय मन मम गति जाही। सपनेहुँ बूझिअ बिपति कि ताही।।
रामायुध अंकित गृह सोभा बरनि न जाइ।
जयति मंगलागार, संसारभारापहर, वानराकारविग्रह पुरारी।
'येन केन प्रकारेण रामे बुद्धिं निवेशयेत्।'
नाथ एक आवा कपि भारी । तेहिं असोक बाटिका उजारी ॥
मारुतस्य समो वेगे गरुडस्य समो जवे।
सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपने बस करि राखे रामू॥
प्रबल प्रेम के पाले पड़ के, प्रभु का नियम बदलते देखा ।
बलि बाँधत प्रभु बाढ़ेउ सो तनु बरनि न जाइ।
विक्रान्तस्त्वं समर्थस्त्वं प्राज्ञस्त्वं वानरोत्तम।
सूर सिरोमनि साहसी सुमति समीर कुमार।
सीता तैं मम कृत अपमाना। कटिहउँ तव सिर कठिन कृपाना ॥
राममुद्रिका मिलने पर जगतजननी जानकीजी के हृदय के भाव का सुंदर गायन।
श्रीशुकदेवजी कहते है, राजन् किम्पुरुषवर्ष मे श्रीलक्ष्मणजी के बड़े भाई, आदिपुरुष सीताहृदयाभिराम भगवान् श्रीरामजी के चरणो की सन्निधि के रसिक परम भागवत श्रीहनुमान्जी अन्य सेवको सहित अविचल भक्तिभावसे उनकी उपासना कर अन्य गन्धर्वो सहित आर्षृिषेण भगवान् श्रीरामजी की गुणगाथा गाते है।
श्री हनुमानजी कृत श्री रामचन्द्र जी की परमपावन स्तुति
राम दूत मैं मातु जानकी। सत्य सपथ करुनानिधान की॥
तुम्हरो मंत्र विभीषण माना, लंकेस्वर भए सब जग जाना॥
ये मंत्र
सब सुख लहै तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू को डरना।
समदरसी मोहि कह सब कोऊ। सेवक प्रिय अनन्य गति सोऊ॥
कनक बरन तन तेज बिराजा। मानहुँ अपर गिरिन्ह कर राजा॥
राम कपिन्ह जब आवत देखा। किएँ काजु मन हरष बिसेषा॥
सिर लंगूर लपेटि पछारा। निज तनु प्रगटेसि मरती बारा॥
हनूमान सम नहिं बड़भागी। नहिं कोउ राम चरन अनुरागी॥
हनुमानजी का सीना चीरना
भगवान् श्री रामचंद्रजी ने घोषणा करवा दी, "जो मंगलवार को मेरे अनन्यप्रीतिभाजन महावीर श्री हनुमानजी को जो तेल और सिन्दूर चढ़ायेंगे, उन्हें मेरी प्रसन्नता प्राप्त होगी और उनकी समस्त कामनाओंकी पूर्ति हो जाया करेगी।"
हनुमानजी को सिंदूर चढ़ाए जाने का रहस्य
मूदहु नयन बिबर तजि जाहू। पैहहु सीतहि जनि पछिताहू॥
योगिनी स्वयंप्रभा की कथा