पाछें पवन तनय सिरु नावा। जानि काज प्रभु निकट बोलावा॥
SundarKand
मोरें हृदय परम संदेहा। सुनि कपि प्रगट कीन्हि निज देहा॥
सब जानत प्रभु प्रभुता सोई। तदपि कहें बिनु रहा न कोई॥
हनूमान सम नहिं बड़भागी। नहिं कोउ राम चरन अनुरागी॥
मोरें हृदय परम संदेहा। सुनि कपि प्रगट कीन्हि निज देहा॥
कुम्भकरन-रावन पयोद-नाद-ईंधन को, तुलसी प्रताप जाको प्रबल अनल भो।
सिंहनाद करि बारहिं बारा। लीलहिं नाघउँ जलनिधि खारा॥
मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान।
हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास।
स तान् निहत्वा रणचण्डविक्रमः समीक्षमाणः पुनरेव लङ्काम्।
पवनतनय मन भा अति क्रोधा। गर्जेउ प्रबल काल सम जोधा॥
सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपने बस करि राखे रामू॥
भारत के कुछ अत्यंत दुर्लभ प्रमुख हनुमान मंदिरों की सूची और संक्षिप्त कथाएं- (1/2)
बुद्धि विवेक विज्ञान निधाना
भगवान् श्रीराम द्वारा श्रीहनुमानजी का गर्व भंग
जामवंत कह सुनु रघुराया। जा पर नाथ करहु तुम्ह दाया॥
पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना॥
संकटमित्र हनुमानजी
जो नाघइ सत जोजन सागर। करइ सो राम काज मति आगर॥
मोर न्याउ मैं पूछा साईं। तुम्ह पूछहु कस नर की नाईं॥
समदरसी मोहि कह सब कोऊ। सेवक प्रिय अनन्य गति सोऊ॥
सुनु कपि जियँ मानसि जनि ऊना। तैं मम प्रिय लछिमन ते दूना॥
दूने प्रिय क्यों?
ज्ञानिनामग्रगण्यं
संकट समाज असमंजस भो रामराज, काज जुग पूगनि को करतल पल भो।
शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जग वंदन॥
देखा श्रमित बिभीषनु भारी। धायउ हनूमान गिरि धारी॥
गोस्वामी तुलसीदास जी कृत हनुमान जी का अचूक मंत्रात्मक काव्य हनुमान बाहुक
तुम्हरो मंत्र विभीषण माना, लंकेस्वर भए सब जग जाना॥
तुम्हारो मंत्र विभीषण माना का अर्थ
जामवंत कह सुनु रघुराया। जा पर नाथ करहु तुम्ह दाया॥
सहित सहाय रावनहि मारी। आनउँ इहाँ त्रिकूट उपारी॥
यस्मिन् न चलते धर्मो यो धर्मं नातिवर्तते ।
लीन्हों उखारि पहार विशाल, चल्यौ तेहि काल विलम्ब न लायौ।