लील्यो उखारि पहारू बिसाल, चल्यो तेहि काल, बिलंबु न लायो।
SundarKand
मारुत सुत मैं कपि हनुमाना। नामु मोर सुनु कृपानिधाना॥
ता कहुँ प्रभु कछु अगम नहिं जा पर तुम्ह अनुकूल।
मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान।
बहु प्रकार सीतहि समुझाएहु। कहि बल बिरह बेगि तुम्ह आएहु॥
जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता। चलेउ सो गा पाताल तुरंता॥
अंगद अरु हनुमंत प्रबेसा। कीन्ह दुर्ग अस कह अवधेसा॥
अघटित-घटन, सुघट-बिघटन, ऐसी बिरुदावलि नहिं आनकी। सुमिरत संकट-सोच-बिमोचन, मूरति मोद-निधानकी ॥
कनक बरन तन तेज बिराजा। मानहुँ अपर गिरिन्ह कर राजा॥
पंचमुखी हनुमानजी
जाको बालबिनोद समुझि जिय डरत दिवाकर भोरको।
नहिं कलि करम न भगति बिबेकू। राम नाम अवलंबन एकू॥
चलयो हनुमानु, सुनि जातुधानु कालनेमि।
सर पैठत कपि पद गहा मकरीं तब अकुलान।
अनुज समेत गहेहु प्रभु चरना। दीन बंधु प्रनतारति हरना॥
रामसेतु बनाते समय श्री रामजी ने समुद्र में एक पत्थर को बिना 'राम नाम' लिखे ऐसे ही 'छोड़' दिया, वह पत्थर डूब गया तब हनुमानजी ने कहा कि प्रभु आपका नाम लिखने से तो पाषाण भी तैर(तर) जाते है, परंतु यदि जिसको आपने ही 'छोड़' दिया तो उसका डूबना तो निश्चित ही है।
कल्पान्ते मम सायुज्यं प्राप्स्यसे नात्र संशयः।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता, अस बर दीन जानकी माता॥
आश्विनस्यासिते पक्षे भूतायां च महानिशि।
जयति वेदान्तविद विविध-विद्या-विशद, वेद-वेदांगविद ब्रह्मवादी।
नारदपुराण में वर्णित विभिन्न मंत्रों द्वारा श्रीहनुमानजी की उपासना एवं उनका दर्शन प्राप्त करने की मंत्र-साधना, दीपदान की विधि (२/२)-
कपि देखा दारुन भट आवा। कटकटाइ गर्जा अरु धावा ||
कल्पान्ते मम सायुज्यं प्राप्स्यसे नात्र संशयः।
पुरस्कार वितरण
प्रभु कर पंकज कपि कें सीसा। सुमिरि सो दसा मगन गौरीसा॥
दासोऽहं कोसलेन्द्रस्य रामस्याक्लिष्टकर्मणः।
दास्य भक्ति के आचार्य
तब देखी मुद्रिका मनोहर। राम नाम अंकित अति सुंदर॥
सुंदरकांड का सौंदर्य
राम त्वत्तोऽधिकं नाम इति मे निश्चिता मतिः।
रटति निसिबासर निरंतर राम राजिवनैन।
हनूमंस्ते प्रसन्नोऽस्मि वरं वरय काङ्क्षितम्।
सीतासोक हलाहल जाना। किय मारुति महेस तेहि पाना ॥
हा नाथ हा नरवरोत्तम हा दयालो सीतापते रुचिरकुण्डलशोभिवक्त्र ।