चहुँ दिसि चितइ पूँछि मालीगन। लगे लेन दल फूल मुदित मन॥
Vivaah Prasang
कहहु नाथ सुंदर दोउ बालक। मुनिकुल तिलक कि नृपकुल पालक॥
बैठे बरासन रामु जानकि मुदित मन दसरथु भए।
राम रमापति कर धनु लेहू। खैंचहु मिटै मोर संदेहू॥
राम राम महाबाहो जाने त्वां परमेश्वरम् ॥
सीताराम
धनुर्भंग
तेजवंत लघु गनिअ न रानी..
तन सकोचु मन परम उछाहू। गूढ़ प्रेमु लखि परइ न काहू॥
सोहति सीय राम कै जोरी। छबि सिंगारु मनहुँ एक ठोरी॥
गौतम तिय गति सुरति करि नहिं परसति पग पानि।
धरइ जो बिबिध देह सुरत्राता। तुम्ह से सठन्ह सिखावनु दाता॥
अस कहि फिरि चितए तेहि ओरा। सिय मुख ससि भए नयन चकोरा॥
भगवान् श्री रामचन्द्र जी के विवाह प्रसंग की २ चौपाइयों का अर्थ-
जय ताड़का- सुबाहु- मथन मारीच मानहर!
निज पानि मनि महुँ देखि अति मूरति सुरूपनिधान की।
अति अनूप जहँ जनक निवासू। बिथकहिं बिबुध बिलोकि बिलासू॥
चहुँ दिसि चितइ पूँछि मालीगन। लगे लेन दल फूल मुदित मन॥
काचे घट जिमि डारौं फोरी। सकउँ मेरु मूलक जिमि तोरी॥
धरइ जो बिबिध देह सुरत्राता। तुम्ह से सठन्ह सिखावनु दाता॥
सरद बिमल बिधु बदनु सुहावन। नयन नवल राजीव लजावन॥
कंकन किंकिनि नूपुर धुनि सुनि। कहत लखन सन रामु हृदयँ गुनि॥
तब जनक पाइ बसिष्ठ आयसु ब्याह साज सँवारि कै। मांडवी श्रुतकीरति उरमिला कुअँरि लईं हँकारि कै॥
संकल्पि सिय रामहि समरपी सील सुख सोभामई।
दरस लालसा सकुच न थोरी। प्रगटत दुरत बहोरि बहोरी॥
जय रघुबंस बनज बन भानू। गहन दनुज कुल दहन कृसानू॥
विभवभेद कछु कोउ न जाना। सकल जनक कर करहिँ बखाना ॥
तया स राजर्षिसुतोऽभिकामया समेयिवानुत्तमराजकन्यया ।
राम रमापति कर धनु लेहू। खैंचहु मिटै मोर संदेहू॥
देखहिं रूप महा रनधीरा। मनहुँ बीर रसु धरें सरीरा॥