स पद्मकोशः सहसोदतिष्ठत् कालेन कर्मप्रतिबोधनेन।
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करि केहरि कपि कोल कुरंगा। बिगतबैर बिचरहिं सब संगा॥
जब पाहन भे बनबाहन से, उतरे बनरा, 'जय राम' रढ़ें। तुलसी लिएँ सैल-सिला सब सोहत, सागरु ज्यों बल बारि बढ़ें॥
जिनका चरित्र सम्पूर्ण विघ्नोंसे मुक्त, अनन्त और अपार है, जो तीनो लोकोंकी रक्षाके लिये सर्वोपरि मार्गदर्शक हैं, जिन्होंने लीलापूर्व कूर्म विग्रह धारण कर रखा है, जो कल्प के अन्त में स्नान करने के ब्याज से समुद्र के मध्य में कभी आगे बढ़ते हुए ऊपर-नीचे गोते लगा लोट-पोट हो रहे थे,
यो धत्ते शेषनागं तदनु वसुमतीं स्वर्गपातालयुक्तां युक्तां सर्वैः समुद्रैर्हिमगिरिकनकप्रस्थमुख्यैर्नगेन्द्रैः।
राम भगत हित नर तनु धारी। सहि संकट किए साधु सुखारी॥
माघ मकरगत रबि जब होई। तीरथपतिहिं आव सब कोई॥
भक्तियोग बड़ी तीव्रता से पूर्व कर्मोव पापो का व्यय करवा देता है, क्योंकि सारे ग्रह नक्षत्र ध्रुव जी की ही परिक्रमा करते है और इसीलिए सुदामा को भी प्रभु को याद करने में इतना समय लगा, ज्योतिषों को भी ये बात जरूर याद रखनी चाहिए।
सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपने बस करि राखे रामू॥
नान्यैरधिष्ठितं भद्र यद्भ्राजिष्णु ध्रुवक्षिति।
ध्रुवजी का सबसे ऊंचा लोक
राजा मुचकुंद भगवान श्रीरामचंद्र जी के भी पूर्वज थे (रघुकुल), जो त्रेतायुग से द्वापरयुग तक उस गुफा में सो रहे थे।
तमालोक्य घनश्यामं पीतकौशेयवाससम्।
नमः कारणमत्स्याय प्रलयाब्धिचराय च।
श्रुति सेतु पालक राम तुम्ह जगदीस माया जानकी। जो सृजति जगु पालति हरति रुख पाइ कृपानिधान की॥
जो सहससीसु अहीसु महिधरु लखनु सचराचर धनी।
जाके सुमिरन तें रिपु नासा। नाम सत्रुहन बेद प्रकासा॥
परहित बस जिन्ह के मन माहीं। तिन्ह कहुँ जग दुर्लभ कछु नाहीं॥
कपिसों कहति सुभाय, अंबके अंबक अंबु भरे हैं। रघुनंदन बिनु बंधु कुअवसर, जद्यपि धनु दुसरे हैं॥
राम बाम दिसि जानकी, लखन दाहिनी ओर ।
राम बाम दिसि जानकी, लखन दाहिनी ओर।
श्री कालभैरवाष्टमी की शुभकामनाएं
उमा अवधबासी नर नारि कृतारथ रूप।
श्री रामधाम अयोध्या
महात्मा गरुडजी के बारह नाम इस प्रकार है-
भारत के कुछ अत्यंत दुर्लभ प्रमुख हनुमान मंदिरों की सूची और संक्षिप्त कथाएं- (1/2)
कुंडल लोल कपोल विराजत सुंदरता चल आई॥
भगवान् का गोविन्द नाम कार्तिक शुक्ल अष्टमी को ही पड़ा था, गौमाता को समर्पित गोपाष्टमी महोत्सव (१/२)
भगवान् का गोविन्द नाम कार्तिक शुक्ल अष्टमी को ही पड़ा था, गौमाता को समर्पित गोपाष्टमी महोत्सव (२/२)
गोपाष्टमी
महिमा नाम रूप गुन गाथा। सकल अमित अनंत रघुनाथा॥
अक्षय तृतीया (त्रेतायुग की उदयतिथि) का आध्यात्मिक एवं पौराणिक महत्व-
भाद्रपद शुक्ल पंचमी (ऋषिपंचमी व्रत) का महात्म्य (कुतिया और बैल की कथा)-