शुक और सारण जैसे नरभक्षक दैत्य भी भगवान के सन्मुख होकर ऋषि बन जाते है- (थ्रेड)
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अति कोमल रघुबीर सुभाऊ। जद्यपि अखिल लोक कर राऊ॥
विभीषण जी का प्रसंग
नन्वेतदुपनीतं मे परमप्रीणनं सखे।
सुदामा का ऐश्वर्य
गमन बिदेस न लेस कलेसको, सकुचत सकृत प्रनाम सो।
भगवान् का संकोची स्वभाव
जनगुन रज गिरि गनि, सकुचत निज गुन गिरि रज परमानु हैं।
नवधा भगति कहउँ तोहि पाहीं। सावधान सुनु धरु मन माहीं॥
लालची ललात, बिललात द्वार-द्वार दीन, बदन मलीन, मन मिटै ना बिसूरना।
जासु कथा कुंभज रिषि गाई। भगति जासु मैं मुनिहि सुनाई॥
करि प्रनाम रामहि त्रिपुरारी। हरषि सुधा सम गिरा उचारी॥
जासु कृपाँ अस भ्रम मिटि जाई। गिरिजा सोइ कृपाल रघुराई ॥
झूठेउ सत्य जाहि बिनु जानें। जिमि भुजंग बिनु रजु पहिचानें॥
सत्य कहेहु गिरिभव तनु एहा। हठ न छूट छूटै बरु देहा॥
झूठेउ सत्य जाहि बिनु जानें। जिमि भुजंग बिनु रजु पहिचानें॥
जसुमति अपनौ पुन्य बिचारै। बार-बार सिसु बदन निहारै॥ अँग फरकाइ अलप मुसकाने। या छबि की उपमा को जानै॥
अस तपु काहुँ न कीन्ह भवानी। भए अनेक धीर मुनि ग्यानी॥
पराम्बा भगवती पार्वती का तपोवृत
सुमिरि महेसहि कहइ निहोरी। बिनती सुनहु सदासिव मोरी॥
याज्ञवल्क्य जी भरद्वाज जी से कहते है, श्रीराम जी की कथा चंद्रमा की किरणों के समान है, जिसे संतरूपी चकोर सदा पान करते हैं। ऐसा ही संदेह पार्वतीजी ने भी किया था, तब महादेव ने विस्तार से उसका उत्तर दिया था।
शिव पार्वती संवाद
संकल्पि सिय रामहि समरपी सील सुख सोभामई।
शापवश मुनिवधू-मुक्तकृत, विप्रहित, यज्ञ-रक्षण-दक्ष, पक्षकर्ता।
जो गौतम मुनिकी स्त्री अहल्याको शापसे मुक्त करनेवाले, विश्वामित्रके यज्ञकी रक्षा करनेमें बड़े चतुर और अपने भक्तोंका पक्ष करनेवाले है तथा राजा जनककी सभामें शिवजी का धनुष तोड़कर महान् तेजस्वी एवं क्रोधी परशुरामजीके गर्व को हरण करनेवाले हैं ॥
श्री भैरव महाराज के इन दस नामों क्रमशः, कपाली, कुण्डली, भीम, भैरव, भीमविक्रम, व्यालोपवीती, कवची, शूली, शूर तथा शिवप्रिय, का जो प्रातःकाल उठकर पाठ करता है, उसे न कभी कोई भैरवी यातना होती है और न कोई सांसारिक भय होता है।
कपाली कुण्डली भीमो भैरवो भीमविक्रमः । व्यालोपवीती कवची शूली शूरः शिवप्रियः ॥
श्री भैरवनाथ की उपासना
उपजइ राम चरन बिस्वासा। भव निधि तर नर बिनहिं प्रयासा॥
भाव सहित खोजइ जो प्रानी। पाव भगति मनि सब सुख खानी॥
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
बिनु बिस्वास भगति नहिं तेहि बिनु द्रवहिं न रामु।
कहेहु तात अस मोर प्रनामा। सब प्रकार प्रभु पूरनकामा।।
प्रभु पहिचानि परेउ गहि चरना। सो सुख उमा जाइ नहिं बरना॥
सो केवल भगतन हित लागी। परम कृपाल प्रनत अनुरागी।।