मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा। पंचम भजन सो बेद प्रकासा॥
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जो सुख सूर अमर मुनि दुरलभ सो नंद भामिनि पावै॥
अहोभाग्य मम अमित अति राम कृपा सुख पुंज।
तुम्ह बिनु दुखी सुखी तुम्ह तेहीं। तुम्ह जानहु जिय जो जेहि केहीं॥
दरस लालसा सकुच न थोरी। प्रगटत दुरत बहोरि बहोरी॥
सो सुतंत्र अवलंब न आना। तेहि आधीन ग्यान बिग्याना॥
चित्रकेतु व भगवान श्रीशेष जी
जय रघुबंस बनज बन भानू। गहन दनुज कुल दहन कृसानू॥
जन रंजन भंजन सोक भयं। गत क्रोध सदा प्रभु बोधमयं॥
अति बल मधु कैटभ जेहिं मारे। महाबीर दितिसुत संघारे॥
दुष्ट विबुधारी-संघात, अपहरण महि-भार, अवतार कारण अनूपं।
अति बल मधु कैटभ जेहिं मारे। महाबीर दितिसुत संघारे॥
अष्टसिद्धि नवनिधि कर जोरे, द्वारै रहति खरी।
अति बल मधु कैटभ जेहिं मारे। महाबीर दितिसुत संघारे॥
कोणार्क सूर्य मंदिर एवं वेदों में भगवान् सूर्य (१/२)
गुरुशिष्य
माता पार्वती की अत्यंत कठोर तपस्या से आकाशवाणी हुई कि, हे पर्वतराज कुमारी! तेरा मनोरथ सफल हुआ। तू अब सारे असह्य कठिन तप त्याग दे। अब तुझे शिवजी मिलेंगे॥ हे भवानी! धीर, मुनि और ज्ञानी बहुत हुए हैं, पर ऐसा (कठोर) तप किसी ने नहीं किया।
श्रीसूर्यनारायण भगवान् की प्रसन्नता एवं शत्रुनाश के लिए रविवार वृत करने का विधान-
माता पार्वती की अत्यंत कठोर तपस्या से आकाशवाणी हुई कि, हे पर्वतराज कुमारी! तेरा मनोरथ सफल हुआ। तू अब सारे असह्य कठिन तप त्याग दे। अब तुझे शिवजी मिलेंगे॥ हे भवानी! धीर, मुनि और ज्ञानी बहुत हुए हैं, पर ऐसा (कठोर) तप किसी ने नहीं किया।
श्री राधिका सकल गुन पूरन, जाके स्याम अधीन। सँग तैँ होत नहीं कहुँ न्यारे, भए रहत अति लीन॥
हरिहर
अंतरयामी सदाशिव जान्यौ, रुदन कियौ अति गाढौ।
दुर्गा नारायणीशाना विष्णुमाया शिवा सती ॥
दुर्गाजी की उत्पत्ति की कथा
स्वस्ति श्रीगणनायको गजमुखो मोरेश्वरः सिद्धिदः बल्लाळस्तु विनायकस्तथ मढे चिन्तामणिस्थेवरे।
तव दासस्य दासानां शतसङ्ख्योत्तरस्य वा। दासीत्वे नाधिकारोऽस्ति कुतः साक्षात्तवैव हि॥
तप्तहाटककेशान्तज्वलत् पावक लोचन।
अवधपुरीं रघुकुलमनि राऊ। बेद बिदित तेहि दसरथ नाऊँ॥
अंसन्ह सहित देह धरि ताता। करिहउँ चरित भगत सुखदाता॥
रक्तवर्ण शुभ, एकदन्त शुचि, ध्वज-मूषक, शोभित शशि भाल।
पदानि तस्याखिललोकपालकिरीटजुष्टामलपादरेणोः ।