भुजदंड प्रचंड प्रताप बलम। खल वृंद निकंद महा कुशलम॥
Narayan
वेदानुद्धरते जगन्निवहते भूगोलमुद्विभ्रते दैत्यं दारयते बलिं छलयते क्षत्रक्षयं कुर्वते।
जेहिं बलि बाँधि सहसभुज मारा।
स पद्मकोशः सहसोदतिष्ठत् कालेन कर्मप्रतिबोधनेन।
जिनका चरित्र सम्पूर्ण विघ्नोंसे मुक्त, अनन्त और अपार है, जो तीनो लोकोंकी रक्षाके लिये सर्वोपरि मार्गदर्शक हैं, जिन्होंने लीलापूर्व कूर्म विग्रह धारण कर रखा है, जो कल्प के अन्त में स्नान करने के ब्याज से समुद्र के मध्य में कभी आगे बढ़ते हुए ऊपर-नीचे गोते लगा लोट-पोट हो रहे थे,
यो धत्ते शेषनागं तदनु वसुमतीं स्वर्गपातालयुक्तां युक्तां सर्वैः समुद्रैर्हिमगिरिकनकप्रस्थमुख्यैर्नगेन्द्रैः।
नमः कारणमत्स्याय प्रलयाब्धिचराय च।
लक्ष्मीं श्रियं च कमलां कमलालयां च
24 में से सात अवतार
24 में से सात अवतार
वराह अवतार- जिनका तत्त्व मन्त्रोंसे जाना जाता है, जो यज्ञ और क्रतुरूप हैं तथा बड़े-बड़े यज्ञ जिनके अङ्ग हैं, उन ओंकारस्वरूप शुक्लकर्ममय त्रियुगमूर्ति पुरुषोत्तम भगवान् वराह को बार बार नमस्कार है, भगवान वराह ने ही अहंकारी हिरण्याक्ष का वध करके धरती को पाप मुक्त करा था ।।
गजेंद्र की प्रार्थना और उसके उद्धारक भगवान विष्णु।
ॐ नमो भगवते आत्मविशोधनाय नमः॥
शांत, निरपेक्ष, निर्मम, निरामय, अगुण, शब्दब्रह्मैकपर, ब्रह्मज्ञानी।
आवेशावतार श्री नरसिंह भगवान, श्री हरि की भक्त प्रहलाद पर कृपा।।
प्रभु सत्य करी प्रहलादगिरा, प्रगटे नरकेहरि खंभ महाँ। झषराज ग्रस्यो गजराजु, कृपा ततकाल बिलंबु कियो न तहाँ।
नारायणं निराकारं नरवीरं नरोत्तमम्।
बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार।
नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम् |
लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुजचारी।
भगवान् के शस्त्र धारण का रहस्य
प्रगटे श्रीवामन अवतार, निरख अदित मुख करत प्रशंसा, जगजीवन आधार।
सर्ब सर्बगत सर्ब उरालय। बससि सदा हम कहुँ परिपालय
पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।
तापस को बरदायक देव सबै पुनि बैरू बढ़ावत बाढ़ें।
नारायण
प्राग्उत्तरस्यां शाखायां तस्यापि ददृशे शिशुम्।
करारविन्देन पदारविन्दं मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम्।
नारायण
न त्वया सदृशो मह्यं प्रियोऽस्ति भगवन् हरे ।
इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम् ।
जासु नाम सुमिरत एक बारा। उतरहिं नर भवसिंधु अपारा॥