पद्मानने पद्मविपद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि।
Narayan
पञ्चमी दण्डनाथा च संकेता समयेश्वरी।
सिंधुसुता माँ महालक्ष्मी
सुपर्णस्कन्धमारूढो मेरुशृंगमिवाम्बुदः।
श्री
गरुड़ध्वज
समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डिते।
भूदेवी
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम् ।
जो लक्ष्मी, श्री, कमला, कमलालया, पद्मा, रमा, नलिनयुग्मकरा ( दोनों हाथों में कमल धारण करनेवाली ), मा, क्षीरोदजा, अमृतकुम्भकरा ( हाथों में अमृत का कलश धारण करनेवाली ), इरा और विष्णुप्रिया, इन नामों का सदा जप करते हैं, उनके लिये कहीं दुःख नहीं है ॥
लक्ष्मीं श्रियं च कमलां कमलालयां च
ऐश्वर्यस्य समग्रस्य धर्मस्य यशसः श्रियः।
भगवान् कौन है?
राघवत्वेऽभवत्सीता रुक्मिणी कृष्णजन्मनि।
ऐश्वर्य्याधिष्ठातृदेवी सर्वमङ्गलकारिणी।
गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिंधुसुता प्रिय कंता..
ईसनके ईस, महाराजनके महाराज, देवनके देव, देव! प्रानहुके प्रान हौं।
निर्मल मन जन सो मोहि पावा। मोहि कपट छल छिद्र न भावा॥
तपबल रचइ प्रपंचु बिधाता। तपबल बिष्नु सकल जग त्राता॥
आरतपाल कृपाल जो रामु जेहीं सुमिरे तेहिको तहँ ठाढ़े।
धृत शर धनुषं रघुकुल तिलकं। गरुडध्वज स्थित कौस्तुभ भरणं।
स पद्मकोशः सहसोदतिष्ठत् कालेन कर्मप्रतिबोधनेन।
सुनु गिरिजा हरिचरित सुहाए। बिपुल बिसद निगमागम गाए॥
बलि बाँधत प्रभु बाढ़ेउ सो तनु बरनि न जाइ।
सर्ब सर्बगत सर्ब उरालय। बससि सदा हम कहुँ परिपालय॥
तमेकमद्भुतं प्रभुं। निरीहमीश्वरं विभुं॥
अगुण सगुण गुण मंदिर सुंदर, भ्रम तम प्रबल प्रताप दिवाकर।
पद पाताल सीस अज धामा। अपर लोक अँग अँग बिश्रामा॥
हरिहर
चतुर्भुजं चिदानन्दं मल्लचाणूरमर्दनम्।
साङ्केत्यं पारिहास्यं वा स्तोभं हेलनमेव वा ।
अंतरजामिहुतें बड़े बाहेरजामि हैं राम, जे नाम