भगवान् विष्णु दक्ष प्रजापति से कहते हैं, हे विप्र.. हम तीनों एकरूप हैं, और समस्त भूतों की आत्मा हैं, हमारे अंदर जो भेद-भाव नहीं करता,निसंदेह वह शान्ति को प्राप्त होता है।
Narayan
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पते ।
राम सिंधु घन सज्जन धीरा। चंदन तरु हरि संत समीरा॥
अग्नीर्मूर्धा चक्षुषी चन्द्रसूर्यौ दिशः श्रोत्रे वाग् विवृताश्च वेदाः।
वामनं विश्वरूपं च वासुदेवं च विठ्ठलम् ।
जो भव भय भंजन मुनि मन रंजन गंजन बिपति बरूथा।
भगवान् की वामनलीला का रहस्य (१/२)
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पते ।
तुलसीजी
मेघश्यामं पीतकौशेयवासं श्रीवत्साङ्कं कौस्तुभोद्भासिताङ्गम्।
माधवोमाधवावीशौ सर्वसिद्धिविधायिनौ ।
गिरा अरथ जल बीचि सम कहिअत भिन्न न भिन्न।
कृते च प्रभवे चैत्रे प्रतिपच्छुक्लपक्षगा।
श्रीहरि
मीन कमठ सूकर नरहरी। बामन परसुराम बपु धरी॥
ब्रह्मर्षीणां भृगुरहं राजर्षीणामहं मनुः।
नारद जानेउ नाम प्रतापू। जग प्रिय हरि हरि हर प्रिय आपू॥
नमो भगवते तस्मै वासुदेवाय चक्रिणे ।
सो सुतंत्र अवलंब न आना। तेहि आधीन ग्यान बिग्याना॥
जन रंजन भंजन सोक भयं। गत क्रोध सदा प्रभु बोधमयं॥
अति बल मधु कैटभ जेहिं मारे। महाबीर दितिसुत संघारे॥
अति बल मधु कैटभ जेहिं मारे। महाबीर दितिसुत संघारे॥
अति बल मधु कैटभ जेहिं मारे। महाबीर दितिसुत संघारे॥
तप्तहाटककेशान्तज्वलत् पावक लोचन।
स्फुरत्किरीटवलय हारनूपुरमेखलम्।
धर्माधर्मान् विजित्याथ बदरीशं विभुं हरिम् ।
बद्रीनाथ जी