श्रीराधाजी
Radha krishna
श्री राधाजी
अहमप्यागतस्तर्हि यमुनायास्तटं शुभम्।
नारदपंचरात्र मे वर्णित श्रीराधाजी के इन सैंतीस नामो से युक्त स्तोत्र का पाठ करनेवाला इस लोकमे अचल लक्ष्मी व परलोक मे हरि चरणों मे भक्ति प्राप्त करता है।
श्रीराधाजी
वृन्दावनेश्वर वृन्दावनेश्वरी
गिरा अरथ जल बीचि सम कहिअत भिन्न न भिन्न।
श्रीराधाजी और श्रीशुकदेव जी की कथा
कुंजबिहारी
रास रसिक गोपाल लाल, ब्रजबाल-संग बिहरत बृंदाबन। सप्त सुरनि मुरली बाजति, धुनि सुनि मोहे सुर-नर-गंध्रब-पन।।
जाकी मायाबस बिरंचि सिव, नाचत पार न पायो। करतल ताल बजाय ग्वाल-जुवतिन्ह सोइ नाच नचायो॥
श्रीराधारमण
केस सँवारि, रय बेनी रचि, सुरभित सुमन गुँथाए।
यदा युवां प्रीतियुतौ च दम्पती
ऊधौ ! तुम भए बौरे, पाती लैके आए दौरे,
श्री उद्धव राधा संवाद
भगवान श्रीकृष्ण और भगवती श्रीराधाजी के दिव्य युगल चरण चिन्ह
नारदपंचरात्र मे वर्णित श्रीराधाजी के इन सैंतीस नामो से युक्त स्तोत्र का पाठ करनेवाला इस लोकमे अचल लक्ष्मी व परलोक मे हरि चरणों मे भक्ति प्राप्त करता है।
सेस गनेस महेस दिनेस सुरेसहु जाहि निरंतर गावै।
श्री राधाजी
श्री राधिका सकल गुन पूरन, जाके स्याम अधीन। सँग तैँ होत नहीं कहुँ न्यारे, भए रहत अति लीन॥
वृषभानुसुता जगतजननी श्री राधाजी के प्राकट्य का रहस्य, समय एवं राधाष्टमी व्रत का माहात्म्य- (१/३)