श्री बाँकेबिहारी
Shri Krishna
गोविंद
मुझमें विलीन झंकार सकल, मुझमें लय है संसार सकल।
रास रसिक गोपाल लाल, ब्रजबाल-संग बिहरत बृंदाबन। सप्त सुरनि मुरली बाजति, धुनि सुनि मोहे सुर-नर-गंध्रब-पन।।
रूप सकहिं नहिं कहि श्रुति सेषा। सो जानइ सपनेहुँ जेहिं देखा॥
राजा मुचकुंद भगवान श्रीरामचंद्र जी के भी पूर्वज थे (रघुकुल), जो त्रेतायुग से द्वापरयुग तक उस गुफा में सो रहे थे।
तमालोक्य घनश्यामं पीतकौशेयवाससम्।
कुंडल लोल कपोल विराजत सुंदरता चल आई॥
भगवान् का गोविन्द नाम कार्तिक शुक्ल अष्टमी को ही पड़ा था, गौमाता को समर्पित गोपाष्टमी महोत्सव (१/२)
नमस्ते वासुदेवाय नमः सङ्कर्षणाय च। प्रद्युम्रायानिरुद्धाय सात्वतां पतये नमः ॥
दामोदर.❤️
दामोदर
धन्य जसोदा भाग तिहारौ..
जिन बाँध्यो सुर असुर नाग नर प्रबल करमकी डोरी।
जाकी मायाबस बिरंचि सिव, नाचत पार न पायो। करतल ताल बजाय ग्वाल-जुवतिन्ह सोइ नाच नचायो॥
इति निर्वन्धतः स्थालीमानाय्य स यदूद्वहः।
द्रौपदी की महर्षि दुर्वासाजी से रक्षा
श्रीव्यासजी को भगवान् के दर्शन
स्याम घन दिब्य तन पीत पट दामिनी, इंद्र-धनु मोर कौ मुकुट सोहै।
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
जिनकी केवल कृपा दृष्टि से सकल विश्व को पलते देखा.
जड पंच मिलै जेहिं देह करी करनी लखु धीं धरनीधरकी।
कोटि-कोटि शत मदन-रति सहज विनिन्दक रूप।
माता रुक्मिणी का संदेश (1/3)
भगवान् श्रीकृष्ण का श्रीउद्धव जी को उपदेश (१/२)
श्रीराधारमण
जाकी सहज स्वास श्रुति चारी। सो हरि पढ़ यह कौतुक भारी॥
प्रबल प्रेम के पाले पड़ कर प्रभु को नियम बदलते देखा।
प्रबल प्रेम के पाले पड़ कर प्रभु को नियम बदलते देखा .
तजो भोगों की फलासक्ति का पूरा त्याग।
जब जब होई धरम की हानि, बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी।