सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपने बस करि राखे रामू॥
Shri Raghunath ji
प्रेमाकुल प्रभु मोहि बिलोकी, निज माया प्रभुता तब रोकी॥
तहँ तरु किसलय सुमन सुहाए। लछिमन रचि निज हाथ डसाए॥
भरतु अवधि सनेह ममता की। जद्यपि रामु सीम समता की।
श्याम तामरस दाम शरीरं। जटा मुकुट परिधन मुनिचीरं॥
तिन्ह कें गृह अवतरिहउँ जाई। रघुकुल तिलक सो चारिउ भाई॥
प्रबल प्रेम के पाले पड़ के, प्रभु का नियम बदलते देखा ।
पापवंत कर सहज सुभाऊ। भजनु मोर तेहि भाव न काऊ॥
बलि बाँधत प्रभु बाढ़ेउ सो तनु बरनि न जाइ।
तन मन बचन उमग अनुरागा। धीर धुरंधर धीरजु त्यागा॥
सोइ सर्बग्य तग्य सोइ पंडित। सोइ गुन गृह बिग्यान अखंडित॥
विक्रान्तस्त्वं समर्थस्त्वं प्राज्ञस्त्वं वानरोत्तम।
सूर सिरोमनि साहसी सुमति समीर कुमार।
सीता तैं मम कृत अपमाना। कटिहउँ तव सिर कठिन कृपाना ॥
कर सारंग साजि कटि भाथा। अरि दल दलन चले रघुनाथा॥
सरसिज लोचन बाहु बिसाला। जटा मुकुट सिर उर बनमाला॥
लव निमेष परमानु जुग बरष कलप सर चंड।
सगुन ध्यान रुचि सरस नहिं निर्गुन मन ते दूरि।
आगें राम अनुज पुनि पाछें। मुनि बर बेष बने अति काछें॥
रिपु सम मोहि मारेसि अति भारी। हरि लीन्हसि सर्बसु अरु नारी॥
कह सुग्रीव सुनहु रघुबीरा। तजहु सोच मन आनहु धीरा॥
राममुद्रिका मिलने पर जगतजननी जानकीजी के हृदय के भाव का सुंदर गायन।
अजहुँ जासु उर सपनेहुँ काऊ। बसहुँ लखनु सिय रामु बटाऊ॥
जनगुन रज गिरि गनि, सकुचत निज गुन गिरि रज परमानु हैं।
प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्हीं। मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं॥
ढोल गंवार शुद्र पशु नारी चौपाई की स्वामी श्रीरामसुखदास जी महाराज द्वारा व्याख्या
श्रीशुकदेवजी कहते है, राजन् किम्पुरुषवर्ष मे श्रीलक्ष्मणजी के बड़े भाई, आदिपुरुष सीताहृदयाभिराम भगवान् श्रीरामजी के चरणो की सन्निधि के रसिक परम भागवत श्रीहनुमान्जी अन्य सेवको सहित अविचल भक्तिभावसे उनकी उपासना कर अन्य गन्धर्वो सहित आर्षृिषेण भगवान् श्रीरामजी की गुणगाथा गाते है।
श्री हनुमानजी कृत श्री रामचन्द्र जी की परमपावन स्तुति
एक भरोसो एक बल, एक आस विश्वास।
द्विबिद मयंद नील नल अंगद गद बिकटासि।
राम दूत मैं मातु जानकी। सत्य सपथ करुनानिधान की॥
श्रीरामेति पदं चोक्त्वा जय राम ततः परम् ।