तुलसी मेरे राम को रीझ भजो या खीज ।
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सुनहु राम कर सहज सुभाऊ। जन अभिमान न राखहिं काऊ॥
माथे हाथ ऋषि जब दियो राम किलकन लागे।
कीन्ह दंडवत तीनिउँ भाई। सहित पवनसुत सुख अधिकाई॥
मानस में प्रेमतत्व
सनकादि मुनियों को आते देखकर श्री रामचंद्र जी ने हर्षित होकर दंडवत किया और स्वागत (कुशल) पूछकर प्रभु ने (उनके) बैठने के लिए अपना पीताम्बर बिछा दिया फिर हनुमान जी सहित तीनो भाइयो ने दंडवत की। मुनि श्री रघुनाथ जी की अतुलनीय छबि देखकर उसी में मग्न हो गए। वे मन को रोक न सके॥
रामचरितमानस में प्रेमतत्व
विभिन्न सम्प्रदायों के तिलक व तिलकधारण की महिमा- (1/2)
Source- कल्याण मासिक अंक (आदिपुराण)
आदिपुराण
बुद्धि विवेक विज्ञान निधाना
भगवान् श्रीराम द्वारा श्रीहनुमानजी का गर्व भंग
बुद्धि विवेक विज्ञान निधाना
भगवान् श्रीराम द्वारा श्रीहनुमानजी का गर्व भंग
जब भगवान ने अपनी माया को हटा लिया, तब वहाँ न लक्ष्मी ही रह गईं, न राजकुमारी ही। तब मुनि ने अत्यंत भयभीत होकर हरि के चरण पकड़ लिए और कहा, हे शरणागत के दुःखों को हरनेवाले! मेरी रक्षा कीजिए।
नारदजी को स्त्री रूप प्राप्ति
जब हरि माया दूरि निवारी। नहिं तहँ रमा न राजकुमारी॥
नारदजी को स्त्रीरूप की प्राप्ति
हे हरि, अबकी तुमने अच्छे घर बैर लिया (मुझसे छेड़खानी की है),अतः अपने किए का फल अवश्य पाओगे। जिस शरीर (मनुष्य) को धरकर तुमने मुझे ठगा है, तुम भी वही शरीर धारण करो, यह मेरा शाप है। तुमने हमे बंदर का रूप दिया,इससे बंदर ही तुम्हारी सहायता करेंगे। जिस स्त्री को मै चाहता था, तुमने उससे
श्रीनारद मोह की कथा
भले भवन अब बायन दीन्हा। पावहुगे फल आपन कीन्हा॥
नारद मोह की कथा
शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे।
जामवंत कह सुनु रघुराया। जा पर नाथ करहु तुम्ह दाया॥
नील सरोरुह नील मनि नील नीरधर स्याम।
जनहि मोर बल निज बल ताही। दुहु कहँ काम क्रोध रिपु आही॥
नाथ सुहृद सुठि सरल चित सील सनेह निधान।
जाकी सहज स्वास श्रुति चारी। सो हरि पढ़ यह कौतुक भारी॥
गुरगृहँ गए पढ़न रघुराई। अलप काल बिद्या सब आई॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका, प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका।
पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना॥
संकटमित्र हनुमानजी
जगत में कौन सा ऐसा कठिन काम है जो हे तात! तुमसे न हो सके। श्री राम जी के कार्य के लिए ही तो तुम्हारा अवतार हुआ है। यह सुनते ही हनुमान जी पर्वत के आकार के (अत्यंत विशालकाय) हो गए॥
संकटमित्र हनुमानजी
जो नाघइ सत जोजन सागर। करइ सो राम काज मति आगर॥
माता द्रौपदी का सम्पूर्ण चरित्र।
कुमारी चापि पाञ्चाली वेदीमध्यात् समुत्थिता।
माता द्रौपदी के जन्म की कथा यही से शुरू होती है और यह कथा महाभारत युद्ध का एक प्रमख कारण भी है।
कुलिसह चाहि कठोर अति कोमल कुसुमहु चाहि।
जो अपराधु भगत कर करई। राम रोष पावक सो जरई॥
पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।