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सनकादि मुनियों को आते देखकर श्री रामचंद्र जी ने हर्षित होकर दंडवत किया और स्वागत (कुशल) पूछकर प्रभु ने (उनके) बैठने के लिए अपना पीताम्बर बिछा दिया फिर हनुमान जी सहित तीनो भाइयो ने दंडवत की। मुनि श्री रघुनाथ जी की अतुलनीय छबि देखकर उसी में मग्न हो गए। वे मन को रोक न सके॥
सनकादि मुनियों को आते देखकर श्री रामचंद्र जी ने हर्षित होकर दंडवत किया और स्वागत (कुशल) पूछकर प्रभु ने (उनके) बैठने के लिए अपना पीताम्बर बिछा दिया फिर हनुमान जी सहित तीनो भाइयो ने दंडवत की। मुनि श्री रघुनाथ जी की अतुलनीय छबि देखकर उसी में मग्न हो गए। वे मन को रोक न सके॥
रामचरितमानस में प्रेमतत्व
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सनकादि मुनियों को आते देखकर श्री रामचंद्र जी ने हर्षित होकर दंडवत किया और स्वागत (कुशल) पूछकर प्रभु ने (उनके) बैठने के लिए अपना पीताम्बर बिछा दिया फिर हनुमान जी सहित तीनो भाइयो ने दंडवत की। मुनि श्री रघुनाथ जी की अतुलनीय छबि देखकर उसी में मग्न हो गए। वे मन को रोक न सके॥
जब भगवान ने अपनी माया को हटा लिया, तब वहाँ न लक्ष्मी ही रह गईं, न राजकुमारी ही। तब मुनि ने अत्यंत भयभीत होकर हरि के चरण पकड़ लिए और कहा, हे शरणागत के दुःखों को हरनेवाले! मेरी रक्षा कीजिए।
जब भगवान ने अपनी माया को हटा लिया, तब वहाँ न लक्ष्मी ही रह गईं, न राजकुमारी ही। तब मुनि ने अत्यंत भयभीत होकर हरि के चरण पकड़ लिए और कहा, हे शरणागत के दुःखों को हरनेवाले! मेरी रक्षा कीजिए।
नारदजी को स्त्री रूप प्राप्ति
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जब भगवान ने अपनी माया को हटा लिया, तब वहाँ न लक्ष्मी ही रह गईं, न राजकुमारी ही। तब मुनि ने अत्यंत भयभीत होकर हरि के चरण पकड़ लिए और कहा, हे शरणागत के दुःखों को हरनेवाले! मेरी रक्षा कीजिए।
हे हरि, अबकी तुमने अच्छे घर बैर लिया (मुझसे छेड़खानी की है),अतः अपने किए का फल अवश्य पाओगे। जिस शरीर (मनुष्य) को धरकर तुमने मुझे ठगा है, तुम भी वही शरीर धारण करो, यह मेरा शाप है। तुमने हमे बंदर का रूप दिया,इससे बंदर ही तुम्हारी सहायता करेंगे। जिस स्त्री को मै चाहता था, तुमने उससे
हे हरि, अबकी तुमने अच्छे घर बैर लिया (मुझसे छेड़खानी की है),अतः अपने किए का फल अवश्य पाओगे। जिस शरीर (मनुष्य) को धरकर तुमने मुझे ठगा है, तुम भी वही शरीर धारण करो, यह मेरा शाप है। तुमने हमे बंदर का रूप दिया,इससे बंदर ही तुम्हारी सहायता करेंगे। जिस स्त्री को मै चाहता था, तुमने उससे
श्रीनारद मोह की कथा
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हे हरि, अबकी तुमने अच्छे घर बैर लिया (मुझसे छेड़खानी की है),अतः अपने किए का फल अवश्य पाओगे। जिस शरीर (मनुष्य) को धरकर तुमने मुझे ठगा है, तुम भी वही शरीर धारण करो, यह मेरा शाप है। तुमने हमे बंदर का रूप दिया,इससे बंदर ही तुम्हारी सहायता करेंगे। जिस स्त्री को मै चाहता था, तुमने उससे
जगत में कौन सा ऐसा कठिन काम है जो हे तात! तुमसे न हो सके। श्री राम जी के कार्य के लिए ही तो तुम्हारा अवतार हुआ है। यह सुनते ही हनुमान जी पर्वत के आकार के (अत्यंत विशालकाय) हो गए॥
जगत में कौन सा ऐसा कठिन काम है जो हे तात! तुमसे न हो सके। श्री राम जी के कार्य के लिए ही तो तुम्हारा अवतार हुआ है। यह सुनते ही हनुमान जी पर्वत के आकार के (अत्यंत विशालकाय) हो गए॥
संकटमित्र हनुमानजी
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जगत में कौन सा ऐसा कठिन काम है जो हे तात! तुमसे न हो सके। श्री राम जी के कार्य के लिए ही तो तुम्हारा अवतार हुआ है। यह सुनते ही हनुमान जी पर्वत के आकार के (अत्यंत विशालकाय) हो गए॥
माता द्रौपदी के जन्म की कथा यही से शुरू होती है और यह कथा महाभारत युद्ध का एक प्रमख कारण भी है।
माता द्रौपदी के जन्म की कथा यही से शुरू होती है और यह कथा महाभारत युद्ध का एक प्रमख कारण भी है।
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माता द्रौपदी के जन्म की कथा यही से शुरू होती है और यह कथा महाभारत युद्ध का एक प्रमख कारण भी है।