संग रहे पार्वती, शिव देते उपदेश..
@da_vyas Tweets Collection
जनकसुता समेत प्रभु सोभा अमित अपार।
सरयुतट पर भगवान् श्रीसीतारामजी
निज पानि मनि महुँ देखि अति मूरति सुरूपनिधान की।
जय जय गिरिवर राज किशोरी। जय महेश मुख चन्द चकोरी।
रुद्राक्ष की उत्पत्ति की कथा, धारण विधि एवं माहात्म्य-
रुद्राक्ष की उत्पत्ति की कथा (त्रिपुरासुर वध), धारण विधि एवं माहात्म्य (1/2)
श्रीभगवान् का कथन है की, राम, दाशरथि, शूर, लक्ष्मणानुचर, बली, काकुत्स्थ, पुरुष, पूर्ण, कौसल्येय, रघूत्तम, वेदान्तवेद्य, यज्ञेश, पुरुषोत्तम, जानकीवल्लभ, श्रीमान्, अप्रमेयपराक्रम, इन नामों का नित्यप्रति श्रद्धापूर्वक जप करने से मेरा भक्त अश्वमेध यज्ञ से अधिक फल प्राप्त करता है॥
रामो दाशरथिः शूरो लक्ष्मणानुचरो बली।
धरनि धसइ धर धाव प्रचंडा। तब सर हति प्रभु कृत दुइ खंडा॥
बलि बाँधत प्रभु बाढ़ेउ सो तनु बरनि न जाइ।
रिपु रन जीति सुजस सुर गावत। सीता सहित अनुज प्रभु आवत॥
अवधपुरी प्रभु आवत जानी। भई सकल सोभा कै खानी॥
मैं गंगा तट का सेवक हूँ, तुम भवसागर के स्वामी हो।
छुअत सिला भइ नारि सुहाई। पाहन तें न काठ कठिनाई॥
केवट उतरि दंडवत कीन्हा। प्रभुहि सकुच एहि नहिं कछु दीन्हा॥
पद नख निरखि देवसरि हरषी। सुनि प्रभु बचन मोहँ मति करषी॥
जासु नाम सुमरत एक बारा। उतरहिं नर भवसिंधु अपारा।।
प्रबल प्रेम के पाले पड़ कर प्रभु को नियम बदलते देखा .
बहु छल बल सुग्रीव कर हियँ हारा भय मानि।
देश धर्म पर मिटने वाला शेर शिवा का छावा था । महापराक्रमी, परम प्रतापी एक ही शंभू राजा था ।
इत्येवं बहु भाषन्तं वालिनं राघवोऽब्रवीत्।
सदा संभु अरधंग निवासिनि..
भगवान महामृत्युंजय-
भजं सगिरिजं त्र्यक्षं च मृत्युञ्जयम्॥
सर्ब सर्बगत सर्ब उरालय। बससि सदा हम कहुँ परिपालय॥
तमेकमद्भुतं प्रभुं। निरीहमीश्वरं विभुं॥
जदपि बिरज ब्यापक अबिनासी। सब के हृदयँ निरंतर बासी॥
भरत सील गुर सचिव समाजू। सकुच सनेह बिबस रघुराजू॥
अब प्रभु कृपा करहु एहि भाँति। सब तजि भजनु करौं दिन राती॥