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रामसेतु बनाते समय श्री रामजी ने समुद्र में एक पत्थर को बिना 'राम नाम' लिखे ऐसे ही 'छोड़' दिया, वह पत्थर डूब गया तब हनुमानजी ने कहा कि प्रभु आपका नाम लिखने से तो पाषाण भी तैर(तर) जाते है, परंतु यदि जिसको आपने ही 'छोड़' दिया तो उसका डूबना तो निश्चित ही है।
रामसेतु बनाते समय श्री रामजी ने समुद्र में एक पत्थर को बिना 'राम नाम' लिखे ऐसे ही 'छोड़' दिया, वह पत्थर डूब गया तब हनुमानजी ने कहा कि प्रभु आपका नाम लिखने से तो पाषाण भी तैर(तर) जाते है, परंतु यदि जिसको आपने ही 'छोड़' दिया तो उसका डूबना तो निश्चित ही है।
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रामसेतु बनाते समय श्री रामजी ने समुद्र में एक पत्थर को बिना 'राम नाम' लिखे ऐसे ही 'छोड़' दिया, वह पत्थर डूब गया तब हनुमानजी ने कहा कि प्रभु आपका नाम लिखने से तो पाषाण भी तैर(तर) जाते है, परंतु यदि जिसको आपने ही 'छोड़' दिया तो उसका डूबना तो निश्चित ही है।
राम त्वत्तोऽधिकं नाम इति मे निश्चिता मतिः। त्वयैका तारिताऽयोध्या नाम्ना तु भुवनत्रयम् ॥
राम त्वत्तोऽधिकं नाम इति मे निश्चिता मतिः। त्वयैका तारिताऽयोध्या नाम्ना तु भुवनत्रयम् ॥
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राम त्वत्तोऽधिकं नाम इति मे निश्चिता मतिः। त्वयैका तारिताऽयोध्या नाम्ना तु भुवनत्रयम् ॥
विष्णु भगवान्ने उसी चक्रकी सहायतासे असुरोंका बिना परिश्रम बहुत शीघ्र ही विनाश कर डाला और तीनों लोकोंमें आनन्दकी भेरी बजने लगी। उस चक्रको विष्णु भगवान् बहुत आदरपूर्वक धारण किये रहते हैं और जब-जब शत्रुओंका संहार करना होता है, तब-तब उसे काममें लाते हैं।
विष्णु भगवान्ने उसी चक्रकी सहायतासे असुरोंका बिना परिश्रम बहुत शीघ्र ही विनाश कर डाला और तीनों लोकोंमें आनन्दकी भेरी बजने लगी। उस चक्रको विष्णु भगवान् बहुत आदरपूर्वक धारण किये रहते हैं और जब-जब शत्रुओंका संहार करना होता है, तब-तब उसे काममें लाते हैं।
बैकुंठ चतुर्दशी
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विष्णु भगवान्ने उसी चक्रकी सहायतासे असुरोंका बिना परिश्रम बहुत शीघ्र ही विनाश कर डाला और तीनों लोकोंमें आनन्दकी भेरी बजने लगी। उस चक्रको विष्णु भगवान् बहुत आदरपूर्वक धारण किये रहते हैं और जब-जब शत्रुओंका संहार करना होता है, तब-तब उसे काममें लाते हैं।
'हे द्विजवरो! विभीषण को तो मैं अखण्ड राज्य और आयु दे चुका, वह तो मर नहीं सकता। फिर उसके मरनेकी ही क्या जरूरत है? वह तो मेरा भक्त है, भक्तके लिये मैं स्वयं मर सकता हूँ। सेवकके अपराधी की जिम्मेवारी तो - वास्तवमें स्वामीपर ही होती है। नौकरके दोषसे स्वामी ही दण्डका पात्र होता है,
'हे द्विजवरो! विभीषण को तो मैं अखण्ड राज्य और आयु दे चुका, वह तो मर नहीं सकता। फिर उसके मरनेकी ही क्या जरूरत है? वह तो मेरा भक्त है, भक्तके लिये मैं स्वयं मर सकता हूँ। सेवकके अपराधी की जिम्मेवारी तो - वास्तवमें स्वामीपर ही होती है। नौकरके दोषसे स्वामी ही दण्डका पात्र होता है,
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'हे द्विजवरो! विभीषण को तो मैं अखण्ड राज्य और आयु दे चुका, वह तो मर नहीं सकता। फिर उसके मरनेकी ही क्या जरूरत है? वह तो मेरा भक्त है, भक्तके लिये मैं स्वयं मर सकता हूँ। सेवकके अपराधी की जिम्मेवारी तो - वास्तवमें स्वामीपर ही होती है। नौकरके दोषसे स्वामी ही दण्डका पात्र होता है,