रामादन्यं यथाहं वै मनसापि न चिन्तये ।
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पर उपकार बचन मन काया। संत सहज सुभाउ खगराया॥
श्रीजानकी नवमी की पूजन विधि एवं व्रतोत्सव-(१/२)
मारुतस्य समो वेगे गरुडस्य समो जवे।
साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्॥
सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपने बस करि राखे रामू॥
वशिष्ठकाश्यपोऽत्रिर्जमदग्निस्सगौतमः।
प्रेमाकुल प्रभु मोहि बिलोकी, निज माया प्रभुता तब रोकी॥
तहँ तरु किसलय सुमन सुहाए। लछिमन रचि निज हाथ डसाए॥
भरतु अवधि सनेह ममता की। जद्यपि रामु सीम समता की।
श्याम तामरस दाम शरीरं। जटा मुकुट परिधन मुनिचीरं॥
सातवँ सम मोहि मय जग देखा। मोतें संत अधिक करि लेखा।।
हो चुके एवं आने वाले मन्वन्तरों में सप्तऋषियों की नाम सूची-
तिन्ह कें गृह अवतरिहउँ जाई। रघुकुल तिलक सो चारिउ भाई॥
बलि बाँधत प्रभु बाढ़ेउ सो तनु बरनि न जाइ।
प्रबल प्रेम के पाले पड़ के, प्रभु का नियम बदलते देखा ।
पापवंत कर सहज सुभाऊ। भजनु मोर तेहि भाव न काऊ॥
बलि बाँधत प्रभु बाढ़ेउ सो तनु बरनि न जाइ।
तन मन बचन उमग अनुरागा। धीर धुरंधर धीरजु त्यागा॥
सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते ।
वामनं विश्वरूपं च वासुदेवं च विठ्ठलम् ।
सोइ सर्बग्य तग्य सोइ पंडित। सोइ गुन गृह बिग्यान अखंडित॥
आदित्य द्वादश नाम-
आदित्यानामहं विष्णुर्योतिषां रविरंशुमान्।
सप्ताश्वरथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम् ।
एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः ।
नमस्ते रुद्ररूपाय रसानाम्पतये नमः।
कोटि बिप्र बध लागहिं जाहू। आएँ सरन तजउँ नहिं ताहू।।
विक्रान्तस्त्वं समर्थस्त्वं प्राज्ञस्त्वं वानरोत्तम।
सूर सिरोमनि साहसी सुमति समीर कुमार।