बिस्वनाथ मम नाथ पुरारी। त्रिभुवन महिमा बिदित तुम्हारी॥
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श्रीरामजी के अनन्य सेवक श्रीपवनकुमार के स्पर्श से देवी तो पाताल में प्रविष्ट हो गयीं और उनके स्थान पर स्वयं श्रीरामदूत देवी रूप में भयानक मुख फाड़कर खड़े हो गये और अहिरावण जितनी सामग्री देवी को अर्पित करता वे सब हनुमानजी ग्रहण कर लेते थे।
काला नाग नथैया, नटवर छबि सोहे।
श्रीमद्भागवत में उद्धव जी से ज्ञान चर्चा में भगवान श्री कृष्ण बताते हैं कि ब्रह्मर्षियों में भृगु, राजर्षियों में मनु, देवर्षियों में नारद और गौओं में कामधेनु मैं ही हूँ।
ब्रह्मर्षीणां भृगुरहं राजर्षीणामहं मनुः।
जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि। उत्तर दिसि बह सरजू पावनि॥
नाथ नागेश्वर हरो हर पाप साप अभिशाप तम।
सुनहु भानुकुल केतु जामवंत कर जोरि कह।
कंकन किंकिनि नूपुर धुनि सुनि। कहत लखन सन रामु हृदयँ गुनि॥
नारद जानेउ नाम प्रतापू। जग प्रिय हरि हरि हर प्रिय आपू॥
नमो भगवते तस्मै वासुदेवाय चक्रिणे ।
नाहं वसामि वैकुंठे योगिनां हृदये न च।
जिन्ह के चरन सरोरुह लागी। करत बिबिध जप जोग बिरागी॥
जिन्ह के चरन सरोरुह लागी। करत बिबिध जप जोग बिरागी॥
दामोदर लीला का रहस्य एवं श्रापित कुबेरपुत्रों (यमलार्जुन) के उद्धार की कथा (१/४)
दामोदर लीला, भाग १ (२/३)
दामोदर लीला, भाग १ (१/३)
लिंग थापि बिधिवत करि पूजा। सिव समान प्रिय मोहि न दूजा॥
होइ अकाम जो छल तजि सेइहि। भगति मोरि तेहि संकर देइहि।।
सिव द्रोही मम भगत कहावा। सो नर सपनेहुँ मोहि न पावा॥
सेतुबन्धे च रामेशं घुश्मेशं च शिवालये॥
सब पर राम तपस्वी राजा
वनवास जाने से पूर्व श्री रामचंद्रजी की त्रिजट नामक ब्राह्मण पर कृपा। (वाल्मीकि रामायण)
सब पर राम तपस्वी राजा
करमनास जलु सुरसरि परई। तेहि को कहहु सीस नहिं धरेई॥
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्।
यह धरती का प्रथम छंदबद्ध काव्य जिसे "आदि श्लोक" कहते है, जिसके कारण वाल्मीकि जी को रामायण रचने की प्रेरणा हुई, जब उन्होंने एक वधिक को प्रेम-मग्न क्रोंच पक्षी की हत्या करते देखा और फिर मादा पक्षी की रोने की आवाज़ सुनी तो उनका हृदय अत्यंत द्रवित हुआ व उनके मुख से स्वतः निकल पड़ा1/4
तब जनक पाइ बसिष्ठ आयसु ब्याह साज सँवारि कै। मांडवी श्रुतकीरति उरमिला कुअँरि लईं हँकारि कै॥
जटाजूट सिर मुनिपट धारी। महि खनि कुस साँथरी सँवारी॥
बाबा खाटूश्याम (महारथी बर्बरीक) की सम्पूर्ण कथा-