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श्रीरामजी के अनन्य सेवक श्रीपवनकुमार के स्पर्श से देवी तो पाताल में प्रविष्ट हो गयीं और उनके स्थान पर स्वयं श्रीरामदूत देवी रूप में भयानक मुख फाड़कर खड़े हो गये और अहिरावण जितनी सामग्री देवी को अर्पित करता वे सब हनुमानजी ग्रहण कर लेते थे।
श्रीरामजी के अनन्य सेवक श्रीपवनकुमार के स्पर्श से देवी तो पाताल में प्रविष्ट हो गयीं और उनके स्थान पर स्वयं श्रीरामदूत देवी रूप में भयानक मुख फाड़कर खड़े हो गये और अहिरावण जितनी सामग्री देवी को अर्पित करता वे सब हनुमानजी ग्रहण कर लेते थे।
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श्रीरामजी के अनन्य सेवक श्रीपवनकुमार के स्पर्श से देवी तो पाताल में प्रविष्ट हो गयीं और उनके स्थान पर स्वयं श्रीरामदूत देवी रूप में भयानक मुख फाड़कर खड़े हो गये और अहिरावण जितनी सामग्री देवी को अर्पित करता वे सब हनुमानजी ग्रहण कर लेते थे।
श्रीमद्भागवत में उद्धव जी से ज्ञान चर्चा में भगवान श्री कृष्ण बताते हैं कि ब्रह्मर्षियों में भृगु, राजर्षियों में मनु, देवर्षियों में नारद और गौओं में कामधेनु मैं ही हूँ।
श्रीमद्भागवत में उद्धव जी से ज्ञान चर्चा में भगवान श्री कृष्ण बताते हैं कि ब्रह्मर्षियों में भृगु, राजर्षियों में मनु, देवर्षियों में नारद और गौओं में कामधेनु मैं ही हूँ।
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श्रीमद्भागवत में उद्धव जी से ज्ञान चर्चा में भगवान श्री कृष्ण बताते हैं कि ब्रह्मर्षियों में भृगु, राजर्षियों में मनु, देवर्षियों में नारद और गौओं में कामधेनु मैं ही हूँ।
यह धरती का प्रथम छंदबद्ध काव्य जिसे "आदि श्लोक" कहते है, जिसके कारण वाल्मीकि जी को रामायण रचने की प्रेरणा हुई, जब उन्होंने एक वधिक को प्रेम-मग्न क्रोंच पक्षी की हत्या करते देखा और फिर मादा पक्षी की रोने की आवाज़ सुनी तो उनका हृदय अत्यंत द्रवित हुआ व उनके मुख से स्वतः निकल पड़ा1/4
यह धरती का प्रथम छंदबद्ध काव्य जिसे "आदि श्लोक" कहते है, जिसके कारण वाल्मीकि जी को रामायण रचने की प्रेरणा हुई, जब उन्होंने एक वधिक को प्रेम-मग्न क्रोंच पक्षी की हत्या करते देखा और फिर मादा पक्षी की रोने की आवाज़ सुनी तो उनका हृदय अत्यंत द्रवित हुआ व उनके मुख से स्वतः निकल पड़ा1/4
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यह धरती का प्रथम छंदबद्ध काव्य जिसे "आदि श्लोक" कहते है, जिसके कारण वाल्मीकि जी को रामायण रचने की प्रेरणा हुई, जब उन्होंने एक वधिक को प्रेम-मग्न क्रोंच पक्षी की हत्या करते देखा और फिर मादा पक्षी की रोने की आवाज़ सुनी तो उनका हृदय अत्यंत द्रवित हुआ व उनके मुख से स्वतः निकल पड़ा1/4
तब जनक पाइ बसिष्ठ आयसु ब्याह साज सँवारि कै। मांडवी श्रुतकीरति उरमिला कुअँरि लईं हँकारि कै॥
तब जनक पाइ बसिष्ठ आयसु ब्याह साज सँवारि कै। मांडवी श्रुतकीरति उरमिला कुअँरि लईं हँकारि कै॥
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तब जनक पाइ बसिष्ठ आयसु ब्याह साज सँवारि कै। मांडवी श्रुतकीरति उरमिला कुअँरि लईं हँकारि कै॥