वृषभानुसुता जगतजननी श्री राधाजी के प्राकट्य का रहस्य, समय एवं राधाष्टमी व्रत का माहात्म्य- (१/३)
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नागपंचमी की कथा, महात्म्य एवं विधान (१/२)
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
परम श्रद्धेय भाईजी श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार जी।
भगवान् श्रीविष्णु के आठवें अवतार, महाराज भरत के पिता एवं जैन धर्म के आदितीर्थंकर भगवान् श्री ऋषभदेव जी (१/२)
अजनाभं नामैतद्वर्षं भारतमिति यत आरभ्य व्यपदिशन्ति। (श्रीमद्भागवत ५.७.३)
यं यं यं यक्षरूपं दशदिशिविदितं भूमिकम्पायमानं, सं सं संहारमूर्तिं शिरमुकुटजटाशेखरं चन्द्रबिम्बम् ।।
राम राज बैठें त्रैलोका । हरषित भए गए सब सोका॥
एहि बिधि सकल कथा समुझाई। लिए दुऔ जन पीठि चढ़ाई॥
ब्रह्म राम साकार बने जब प्रेम पुरातन चीनौ।
जा पर कृपा राम की होई, ता पर कृपा करें सब कोई।
सत्यं राक्षसराजेन्द्र शृणुष्व वचनं मम।
पुलकित गात अत्रि उठि धाए। देखि रामु आतुर चलि आए॥
रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे ।
जाना राम सतीं दुखु पावा। निज प्रभाउ कछु प्रगटि जनावा॥
मरकत मृदुल कलेवर स्यामा। अंग अंग प्रति छबि बहु कामा॥
भव सागर चह पार जो पावा। राम कथा ता कहँ दृढ़ नावा॥
राम चलत अति भयउ बिषादू। सुनि न जाइ पुर आरत नादू॥
अंतरजामिहुतें बड़े बाहेरजामि हैं राम, जे नाम
रायँ राम राखन हित लागी। बहुत उपाय किए छलु त्यागी॥
राम-नाम मनि दीप धरु, जीह देहरी द्वार।
कोई तन दुखी कोई मन दुखी कोई धन बिन रहे उदास।।
हनूमानपि तं प्राह नत्वा रामं प्रहृष्टधीः ।
एक भरोसो एक बल, एक आस विश्वास।
राम कपिन्ह जब आवत देखा। किएँ काजु मन हरष बिसेषा॥
राम चरित जे सुनत अघाहीं। रस बिसेष जाना तिन्ह नाहीं॥
जे रामेस्वर दरसनु करिहहिं। ते तनु तजि मम लोक सिधरिहहिं॥
धर्मसील बिरक्त अरु ग्यानी। जीवनमुक्त ब्रह्मपर प्रानी।
आवत देखि सक्ति अति घोरा। प्रनतारति भंजन पन मोरा॥
— Vyas (@da_vyas)
सकुचत सकृत प्रणाम सो