परम मनोहर चरित अपारा। करत फिरत चारिउ सुकुमारा॥
Shri Raghunath ji
'सत्य सपथ करुनानिधान की'
जानि राम सेवा सरस समुझि करब अनुमान।
एकु मैं मंद मोहबस कुटिल हृदय अग्यान।
मोर न्याउ मैं पूछा साईं। तुम्ह पूछहु कस नर की नाईं॥
प्रभु पहिचानि परेउ गहि चरना। सो सुख उमा जाइ नहिं बरना॥
जासु सनेह सकोच बस राम प्रगट भए आई।
देखा भरत बिसाल अति निसिचर मन अनुमानि।
लघु बायस बपु धरि हरि संगा। देखउँ बालचरित बहु रंगा॥
सुख मुद मंगल कुमुद बिधु सुगुन सरोरुह भानु।
गिरा अरथ जल बीचि सम कहिअत भिन्न न भिन्न।
गिरा अरथ जल बीचि सम कहिअत भिन्न न भिन्न।
हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास।
गिरा अरथ जल बीचि सम कहिअत भिन्न न भिन्न।
बचन काँय मन मम गति जाही। सपनेहुँ बूझिअ बिपति कि ताही।।
गुन सील कृपा परमायतनं। प्रनमामि निरंतर श्रीरमनं॥
करतल बान धनुष अति सोहा। देखत रूप चराचर मोहा॥
रामायुध अंकित गृह सोभा बरनि न जाइ।
आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम् ।
गुरु वशिष्ठजी की गोद मे श्रीराम
जयति मंगलागार, संसारभारापहर, वानराकारविग्रह पुरारी।
मुनि धीर जोगी सिद्ध संतत बिमल मन जेहि ध्यावहीं।
षट बिकार जित अनघ अकामा। अचल अकिंचन सुचि सुखधामा॥
कोदंड कठिन चढ़ाइ सिर जट जूट बाँधत सोह क्यों।
'येन केन प्रकारेण रामे बुद्धिं निवेशयेत्।'
नाथ एक आवा कपि भारी । तेहिं असोक बाटिका उजारी ॥
गयउ सभा दरबार तब सुमिरि राम पद कंज।
रामादन्यं यथाहं वै मनसापि न चिन्तये ।
श्रीजानकी नवमी की पूजन विधि एवं व्रतोत्सव-(१/२)
मारुतस्य समो वेगे गरुडस्य समो जवे।