भरतादि अनुज बिभीषनांगद हनुमदादि समेत ते।
Shri Raghunath ji
राघवं रामचंद्रम च रावणारिं रमापतिम्।
राघवं रामचन्दं च रावणारिं रमापतिम्।
राघवं रामचन्दं च रावणारिं रमापतिम् ।
करतल बान धनुष अति सोहा। देखत रूप चराचर मोहा॥
ब्रह्म राम तें नामु बड़ बर दायक बर दानि।
सखा नीति तुम्ह नीकि बिचारी। मम पन सरनागत भयहारी॥
सुर बानर देखे बिकल हँस्यो कोसलाधीस।
निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।
नारदपुराण में वर्णित विभिन्न मंत्रों द्वारा श्रीहनुमानजी की उपासना एवं उनका दर्शन प्राप्त करने की मंत्र-साधना, दीपदान की विधि (२/२)-
मरकत मृदुल कलेवर स्यामा। अंग अंग प्रति छबि बहु कामा॥
राम चलत अति भयउ बिषादू। सुनि न जाइ पुर आरत नादू॥
सबसे ऊँची प्रेम सगाई।
जो गौतम मुनिकी स्त्री अहल्याको शापसे मुक्त करनेवाले, विश्वामित्रके यज्ञकी रक्षा करनेमें बड़े चतुर और अपने भक्तोंका पक्ष करनेवाले है तथा राजा जनककी सभामें शिवजी का धनुष तोड़कर महान् तेजस्वी एवं क्रोधी परशुरामजीके गर्व को हरण करनेवाले हैं ॥
अंसन्ह सहित देह धरि ताता। करिहउँ चरित भगत सुखदाता॥
सुनु हनुमंत संग लै तारा। करि बिनती समुझाउ कुमारा॥
कपि देखा दारुन भट आवा। कटकटाइ गर्जा अरु धावा ||
कल्पान्ते मम सायुज्यं प्राप्स्यसे नात्र संशयः।
पुरस्कार वितरण
प्रभु कर पंकज कपि कें सीसा। सुमिरि सो दसा मगन गौरीसा॥
सर चाप मनोहर त्रोन धरं। जलजारुन लोचन भूपबरं॥
दासोऽहं कोसलेन्द्रस्य रामस्याक्लिष्टकर्मणः।
दास्य भक्ति के आचार्य
कह सुग्रीव सुनहु रघुबीरा। तजहु सोच मन आनहु धीरा॥
सुग्रीवजी ने कहा- हे रघुवीर! सुनिए। सोच छोड़ दीजिए और मन में धीरज लाइए। मैं सब प्रकार से आपकी सेवा करूँगा, जिस उपाय से जानकी जी आकर आपको मिलें॥
सखा सुग्रीव
जनकसुता जग जननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की॥
सुनत राम अति कोमल बानी। बालि सीस परसेउ निज पानी॥
परिहरि रामु सीय जग माहीं। कोउ न कहिहि मोर मत नाहीं॥
भाव सहित खोजइ जो प्रानी। पाव भगति मनि सब सुख खानी॥
तब देखी मुद्रिका मनोहर। राम नाम अंकित अति सुंदर॥
सुंदरकांड का सौंदर्य
राम त्वत्तोऽधिकं नाम इति मे निश्चिता मतिः।
रटति निसिबासर निरंतर राम राजिवनैन।