बंदउँ बालरूप सोइ रामू। सब सिधि सुलभ जपत जिसु नामू॥
Shri Raghunath ji
उभय अगम जुग सुगम नाम तें। कहेउँ नामु बड़ ब्रह्म राम तें॥
ग्यान निधान अमान मानप्रद। पावन सुजस पुरान बेद बद॥
हनूमंस्ते प्रसन्नोऽस्मि वरं वरय काङ्क्षितम्।
भक्तौ सञ्जातमात्रायां मत्तत्त्वानुभवस्तदा।
देखि मनहि महुँ कीन्ह प्रनामा। बैठेहिं बीति जात निसि जामा॥
नाम पाहरू दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
न्यासभूतं तदा न्यस्तमस्माकं पूर्वजे विभौ।
जासु नाम सुमिरत एक बारा। उतरहिं नर भवसिंधु अपारा॥
दंडक बन प्रभु कीन्ह सुहावन जन मन अमित नाम किए पावन॥
राम, भरत, लद्धिमन ललित, सत्रुसमन सुभ नाम।
ब्यापक ब्रह्म निरंजन निर्गुन बिगत बिनोद।
ब्यापक ब्रह्म निरंजन निर्गुन बिगत बिनोद ।
ब्यापक ब्रह्म निरंजन निर्गुन बिगत बिनोद।
उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम्।
जगतजननी भगवती श्री सीता जी का अवतरण (२/३)
जगतजननी माता सीताजी का (अवतरण का हेतु) सांसारिक जीवों पर स्नेह (३/३)
जनकात्मजे राघवप्रिये कनकभासुरे भक्तपालिके।
सीताजी कहती है, हा ईश्वर । तुमने यह क्या किया और क्या करनेका विचार है? चाहे जो हो, मैं रामको छोड़कर दूसरे किसीको नहीं वरूंगी। यदि मेरे पिता मुझे दूसरे किसी को देंगे तो मैं महलपर से गिरकर अवधा विष आदिके द्वारा शीघ्र प्राण त्याग दूंगी। (आनंद रामायण)
मैथिली जानकी सीता वैदेही जनकात्मजा।
धरे नाम गुर हृदयँ बिचारी। बेद तत्त्व नृप तव सुत चारी॥
सीतासोक हलाहल जाना। किय मारुति महेस तेहि पाना ॥
ग्यान अखंड एक सीताबर। माया बस्य जीव सचराचर॥
जनकसुता जग जननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की॥
अवगुन तजि सब के गुन गहहीं। बिप्र धेनु हित संकट सहहीं॥
साकेत लोक
सभय सिंधु गहि पद प्रभु केरे। छमहु नाथ सब अवगुन मेरे ॥
हा नाथ हा नरवरोत्तम हा दयालो सीतापते रुचिरकुण्डलशोभिवक्त्र ।
वन में जाए ताड़का मारी । चरण छुआए अहिल्या तारी॥
चरण पादुका तुम ले जाओ। पूजा कर दर्शन फल पावो॥
सुदिन सोधि गुरु बेद बिधि कियो राज अभिषेक।