चहुँ दिसि चितइ पूँछि मालीगन। लगे लेन दल फूल मुदित मन॥
Shri Raghunath ji
ज्ञानिनामग्रगण्यम्
बंदउँ नाम राम रघुबर को। हेतु कृसानु भानु हिमकर को॥
काचे घट जिमि डारौं फोरी। सकउँ मेरु मूलक जिमि तोरी॥
मोह विपिन घन दहन कृशानुः। संत सरोरुह कानन भानुः॥
परम पुनीत भरत आचरनू। मधुर मंजु मुद मंगल करनू॥
जयति राज-राजेंद्र राजीवलोचन, राम, नाम कलि- कामतरु, साम-शाली। अनय-अंभोधि-कुंभज, निशाचर- निकर- तिमिर- घनघोर खरकिरणमाली।
भानुसों पढ़न हनुमान गये भानु मन- अनुमानि सिसुकेलि कियो फेरफार सो।
तं ददर्श महेष्वासो रथस्थः समलंकृतः। अलंकृतममित्रघ्नो रावणस्यात्मजो बली॥
श्रीरामेति पदं चोक्त्वा जय राम ततः परम् ।
गुन सील कृपा परमायतनं। प्रनमामि निरंतर श्रीरमनं॥
भगवान श्री राम और जगतजननी माता जानकीजी के दिव्य चरण चिन्ह। 🙏🚩
सुठि सुंदर संबाद बर बिरचे बुद्धि बिचारि।
राम चरित अति अमित मुनीसा। कहि न सकहिं सत कोटि अहीसा॥
तात सुनहु सादर मनु लाई। कहउँ राम कै कथा सुहाई॥
संकर सुवन केसरीनंदन। तेज प्रताप महा जग बन्दन॥
जन्म की विभिन्न कथाएं
सो अनन्य जाकें असि मति न टरइ हनुमंत।
जगत बिदित तुम्हारि प्रभुताई। सुत परिजन बल बरनि न जाई॥
जद्यपि ब्रह्म अखंड अनंता। अनुभव गम्य भजहिं जेहि संता।
धन्य देस सो जहँ सुरसरी। धन्य नारि पतिब्रत अनुसरी॥
दुरबासा मोहि दीन्ही सापा। प्रभु पद पेखि मिटा सो पापा॥
अखिल बिस्व यह मोर उपाया। सब पर मोहि बराबरि दाया॥
बिस्वास करि सब आस परिहरि दास तव जे होइ रहे।
कृपादृष्टि करि बृष्टि प्रभु अभय किए सुर बृंद।
परिहरि रामु सीय जग माहीं। कोउ न कहिहि मोर मत नाहीं॥
औरउ एक कहउँ निज चोरी। सुनु गिरिजा अति दृढ़ मति तोरी ॥
देखा श्रमित बिभीषनु भारी। धायउ हनूमान गिरि धारी॥
वासुदेवो भगवतां त्वं तु भागवतेष्वहम्।
धरइ जो बिबिध देह सुरत्राता। तुम्ह से सठन्ह सिखावनु दाता॥
लागे करन ब्रह्म उपदेसा। अज अद्वैत अगुन हृदयेसा॥