Shri Raghunath ji

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श्रीरामं सहलक्ष्मणं सकरुणं सीतान्वितं सात्त्विकं वैदेहीमुखपद्मलुब्धमधुपं पौलस्त्यसंहारकम्।
श्रीरामं सहलक्ष्मणं सकरुणं सीतान्वितं सात्त्विकं वैदेहीमुखपद्मलुब्धमधुपं पौलस्त्यसंहारकम्।
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श्रीरामं सहलक्ष्मणं सकरुणं सीतान्वितं सात्त्विकं वैदेहीमुखपद्मलुब्धमधुपं पौलस्त्यसंहारकम्।
श्रीरामजी के अनन्य सेवक श्रीपवनकुमार के स्पर्श से देवी तो पाताल में प्रविष्ट हो गयीं और उनके स्थान पर स्वयं श्रीरामदूत देवी रूप में भयानक मुख फाड़कर खड़े हो गये और अहिरावण जितनी सामग्री देवी को अर्पित करता वे सब हनुमानजी ग्रहण कर लेते थे।
श्रीरामजी के अनन्य सेवक श्रीपवनकुमार के स्पर्श से देवी तो पाताल में प्रविष्ट हो गयीं और उनके स्थान पर स्वयं श्रीरामदूत देवी रूप में भयानक मुख फाड़कर खड़े हो गये और अहिरावण जितनी सामग्री देवी को अर्पित करता वे सब हनुमानजी ग्रहण कर लेते थे।
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श्रीरामजी के अनन्य सेवक श्रीपवनकुमार के स्पर्श से देवी तो पाताल में प्रविष्ट हो गयीं और उनके स्थान पर स्वयं श्रीरामदूत देवी रूप में भयानक मुख फाड़कर खड़े हो गये और अहिरावण जितनी सामग्री देवी को अर्पित करता वे सब हनुमानजी ग्रहण कर लेते थे।
तब जनक पाइ बसिष्ठ आयसु ब्याह साज सँवारि कै। मांडवी श्रुतकीरति उरमिला कुअँरि लईं हँकारि कै॥
तब जनक पाइ बसिष्ठ आयसु ब्याह साज सँवारि कै। मांडवी श्रुतकीरति उरमिला कुअँरि लईं हँकारि कै॥
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तब जनक पाइ बसिष्ठ आयसु ब्याह साज सँवारि कै। मांडवी श्रुतकीरति उरमिला कुअँरि लईं हँकारि कै॥