तव दासस्य दासानां शतसङ्ख्योत्तरस्य वा। दासीत्वे नाधिकारोऽस्ति कुतः साक्षात्तवैव हि॥
Shri Raghunath ji
अवधपुरीं रघुकुलमनि राऊ। बेद बिदित तेहि दसरथ नाऊँ॥
अंसन्ह सहित देह धरि ताता। करिहउँ चरित भगत सुखदाता॥
जब जब होइ धरम कै हानी। बाढहिं असुर अधम अभिमानी।।
लिंग थापि बिधिवत करि पूजा। सिव समान प्रिय मोहि न दूजा॥
विभवभेद कछु कोउ न जाना। सकल जनक कर करहिँ बखाना ॥
त्यागहिं कर्म सुभासुभ दायक। भजहिं मोहि सुर नर मुनि नायक॥
रामस्य नाम रूपं च लीला धाम परात्परम्। एतच्चतुष्टयं सर्व सच्चिदानन्दविग्रहम्॥
राम लखन मुनि गन मिलन मंजुल मंगल मूल।
सबहिं बिचारु कीन्ह मन माहीं। राम लखन सिय बिनु सुखु नाहीं॥
श्रीरामः शरणं समस्तजगतां रामं विना का गती रामेण प्रतिहन्यते कलिमलं रामाय कार्यं नमः ।
तया स राजर्षिसुतोऽभिकामया समेयिवानुत्तमराजकन्यया ।
वाञ्छितार्थं प्रदास्यामि भक्तानां राघवस्य तु।
साधु, साधु, साधक धीर, धर्म-धन धन्य राम!
भगवान श्री रामचन्द्रजी के बहनोई महर्षि ऋष्यश्रृंग।
प्रथम राम भेंटी कैकेई। सरल सुभायँ भगति मति भेई॥
भगत हेतु भगवान प्रभु राम धरेउ तनु भूप।
राम रमापति कर धनु लेहू। खैंचहु मिटै मोर संदेहू॥
देखहिं रूप महा रनधीरा। मनहुँ बीर रसु धरें सरीरा॥
लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।
कलिजुग जोग न जग्य न ग्याना। एक अधार राम गुन गाना॥
भाव सहित खोजइ जो प्रानी। पाव भगति मनि सब सुख खानी॥
आगें राम अनुज पुनि पाछें। मुनि बर बेष बने अति काछें॥
राघवं रामचंद्रम च रावणारिं रमापतिम्।
जय राम रमारमनं समनं प्रनमामि निरंतर श्रीरमनं।
जो अपराधु भगत कर करई। राम रोष पावक सो जरई ॥
राम ब्रह्म परमारथ रूपा। अबिगत अलख अनादि अनूपा॥
सब साधनको एक फल जेहिं जान्यो सो जान।
भगत हेतु भगवान प्रभु राम धरेउ तनु भूप।
राम रूपु नख सिख सुभग बारहिं बार निहारि।