सिर जटा मुकुट प्रसून बिच बिच अति मनोहर राजहीं। जनु नीलगिरि पर तड़ित पटल समेत उडुगन भ्राजहीं॥
Shri Raghunath ji
तात गहरु होइहि तोहि जाता। काजु नसाइहि होत प्रभाता॥
जो कछु कहेहु सत्य सब सोई। सखा बचन मम मृषा न होई॥
अब प्रभु कृपा करहु एहि भांति सब तजि भजन करौ दिन राति।
जो गति जोग बिराग जतन करि नहिं पावत मुनि ग्यानी।
पूरकनाम राम सुख रासी। मनुजचरित कर अज अबिनासी॥
भगवान श्रीराम के ४८ चरण चिन्ह-
रघुबर बिकल बिहंग लखि सो बिलोकि दोउ बीर।
गीध देह तजि धरि हरि रूपा। भूषन बहु पट पीत अनूपा॥
जल भरि नयन कहहिं रघुराई। तात कर्म निज तें गति पाई॥
पूरकनाम राम सुख रासी। मनुजचरित कर अज अबिनासी॥
जाकर नाम मरत मुख आवा। अधमउ मुकुत होइ श्रुति गावा॥
जामवंत कह सुनु रघुराया। जा पर नाथ करहु तुम्ह दाया॥
सहित सहाय रावनहि मारी। आनउँ इहाँ त्रिकूट उपारी॥
सुनहु तात यह अकथ कहानी। समुझत बनइ न जाइ बखानी॥
एतदत्स्यसि मद्धस्तान्न त्वां बाधिष्यते शुभे ।
नवधा भगति कहउँ तोहि पाहीं। सावधान सुनु धरु मन माहीं।।
यस्मिन् न चलते धर्मो यो धर्मं नातिवर्तते ।
जब रघुनाथ समर रिपु जीते। सुर नर मुनि सब के भय बीते॥
भगवान् श्री रामचन्द्र जी के विवाह प्रसंग की २ चौपाइयों का अर्थ-
लक्ष्मीविलासं जगतां निवासं लङ्काविनाशं भुवनप्रकाशम्।
आगें रामु लखनु बने पाछें। तापस बेष बिराजत काछें॥
बानि बिनायकु अंब रबि गुरु हर रमा रमेस।
जेहिं पद सुरसरिता परम पुनीता प्रगट भई सिव सीस धरी।
ननाम राघवोऽहल्यां रामोऽहमिति चाब्रवीत् ।
जेहिं पद सुरसरिता परम पुनीता प्रगट भई सिव सीस धरी।
गौतम नारि श्राप बस उपल देह धरि धीर।
जेहिं पद सुरसरिता परम पुनीता प्रगट भई सिव सीस धरी। सोई पद पंकज जेहि पूजत अज मम सिर धरेउ कृपाल हरी॥
सति भाउ कै सपनो ? निहारि कुमार कोसलरायके। गहे चरन, जे अघहरन नत जन-बचन-मानस-कायके॥
सुनि मारीच निसाचर क्रोही। लै सहाय धावा मुनिद्रोही॥
रूप-विसेष नाम बिनु जाने। करतल-गत न परहिं पहिचाने ॥